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ज्योतिरादित्य सिंधिया के 2 महीने में 7 करीबियों ने साथ छोड़ा

ज्योतिरादित्य सिंधिया के 2 महीने में 7 करीबियों ने साथ छोड़ा 

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी नेताओं का भारतीय जनता पार्टी से पलायन जारी है. शुक्रवार को नीमच के वरिष्ठ नेता और सिंधिया के करीबी समंदर पटेल ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. पिछले 2 महीने में मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से सिंधिया के 7 करीबी नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया है. 

सिंधिया के जिन समर्थकों ने भारतीय जनता पार्टी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा है, उनमें अधिकांश ग्वालियर चंबल संभाग के हैं. ग्वालियर चंबल संभाग सिंधिया राजघराने का राजनीतिक गढ़ माना जाता रहा है. सिंधिया के सभी करीबियों को सीधे कमलनाथ ने कांग्रेस में शामिल कराया है.

चुनावी साल में सिंधिया समर्थकों के भारतीय जनता पार्टी से रुखसती ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सियासी गलियारों में सवाल पूछा जा रहा है कि सिंधिया अपने लोगों को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं. वहीं सिंधिया गुट का कहना है कि जो नेता बाहर जा रहे हैं, उनका कोई अपना जनाधार नहीं है.

पूर्व विधायक एंदल सिंह कंसाना के भी कांग्रेस में वापसी की अटकलें हैं. कंसाना दर्जा प्राप्त मंत्री हैं. 2020 में सिंधिया के बगावत में शामिल थे, लेकिन उपचुनाव हार गए. सिंधिया के कहने पर कंसाना को मप्र राज्य कृषि उद्योग विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया.

हाल ही में कांग्रेस के विधायक बैजनाथ कुशवाहा ने दावा किया कि कंसाना पार्टी में वापस आना चाहते हैं, इसलिए सिंधिया और दिग्विजय के द्वार का चक्कर लगा रहे हैं. हालांकि, कंसाना ने सफाई दी और सिंधिया के साथ ही रहने की बात कही.

कंसाना के अलावा ग्वालियर गुना के कई संगठन नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा है. कहा जा रहा है कि ये नेता टिकट को लेकर कांग्रेस हाईकमान से आश्वासन चाहते हैं. टिकट की हरी झंडी अगर मिल गई, तो तुरंत कांग्रेस का दामन थाम लेंगे.2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में आए, तो अपने साथ पूरे लाव लश्कर लेकर आए. ग्वालियर चंबल संभाग में कई जगहों से पूरी की पूरी कांग्रेस ही उस वक्त भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई. इसके बाद कयास लगने लगा कि 2023 के चुनाव में इन इलाकों से कांग्रेस का सफाया हो जाएगा. 

हालांकि, चुनाव से पहले जिस तरह सिंधिया के करीबियों की वापसी हो रही है, उसमें सवाल उठ रहा है कि आखिर सिंधिया अपने समर्थकों को भारतीय जनता पार्टी में क्यों नहीं रोक पा रहे हैं?

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