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मेरी माँ भले नही, पर मायका है !


मेरी माँ भले नही, पर मायका है ! 


माँ की मौत के बाद 

जब तेरहवी भी निमट गई तब 

नम आँखों से पीहू ने अपने भाई से विदा ली।


सब काम निमट गये भैया माँ चली गई 

अब मैं चलती हूँ भैया !

आंसुओ के कारण उसके मुंह से 

केवल इतना निकला।

रुक पीहू अभी एक काम तो बाकी रह गया ... 

ये ले माँ की अलमारी खोल और तुझे जो 

सामान चाहिए तू ले जा !


एक चाभी पकड़ाते हुए भैया बोले।

नही भाभी ये आपका हक है आप ही खोलिये !

पिहू  चाभी भाभी को पकड़ाते हुए बोली। 

भाभी ने भैया के स्वीकृति देने पर अलमारी खोली।

देख ये माँ के कीमती गहने , 

कपड़े है तुझे जो ले जाना ले जा 

क्योकि माँ की चीजों पर बेटी का हक 

सबसे ज्यादा होता है ! भैया बोले।


भैया पर मैने तो हमेशा यहां इन गहनो , 

कपड़ो से कीमती चीज देखी है 

मुझे तो वही चाहिए !" पिहू बोली।

पीहू हमने माँ की अलमारी को हाथ तक 

नही लगाया जो है तेरे सामने है 

तू किस कीमती चीज की बात कर रही है !

भैया बोले।

भैया इन गहने कपड़ो पर तो भाभी का हक है 

क्योकि उन्होंने माँ की सेवा बहू नही बेटी बनकर की है। 

मुझे तो वो कीमती सामान चाहिए जो हर बहन बेटी चाहती है !" चारु बोली।


मैं समझ गई दीदी आपको किस चीज की चाह है । 

दीदी आप फ़िक्र मत कीजिये मांजी के बाद भी 

आपका ये मायका हमेशा सलामत रहेगा ! 

पर फिर भी मांजी की निशानी समझ कुछ 

तो ले लीजिये !

भाभी भरी आँखों से बोली तो चारु रोते हुए 

उनके गले लग गई। 

भाभी जब मेरा मायका सलामत है 

मेरे भाई भाभी के रूप मे फिर मुझे किसी 

निशानी की जरूरत नही फिर भी 

आप कहती है तो मैं ये हँसते खेलते 

मेरे मायके की तस्वीर ले जाना चाहूंगी 

जो मुझे हमेशा एहसास कराएगा की 

मेरी माँ भले नही पर मायका है ! 


चारु पूरे परिवार की तस्वीर उठाते हुए 

बोली और नम आँखों से विदा ली सबसे...!!


लेखिका 

प्रिया सिंह बनाफर 

जिला भोपाल (म. प्र.)

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