ग़ज़ल
देखो कभी न आना सियासत की चाल में
गीदड़ ही घूमते यहॉं शेरों की खाल में।
छोटी सी जिंदगी को जरा खुल के हम जियें
गुजरे न जिंदगी ये किसी भी मलाल में।
मुमकिन नहीं है वस्ल हक़ीक़त में अपना गर
तुम पर ग़ज़ल कहूॅंगा मैं,मिलना ख़याल में।
हर शख्स जिंदगी का सताया हुआ यहॉं
उलझा हुआ है हर कोई इसके सवाल में।
उछले बुलंदी के लिये पर कुछ तो खोया है
कुछ रिश्ते छोड़ आये हैं लम्बी उछाल में।
लेखक - सचिन नेमा (गाडरवारा)
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