बेटी की पेटी सिस्टम फेल, भरोसे का डिब्बा फांक रहा धूल
महिलाओं और छात्राओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस द्वारा बड़ी उम्मीदों के साथ शुरू की गई ’बेटी की पेटी’ योजना अब अधर में है। शहर के सार्वजनिक स्थानों पर असुरक्षित महसूस करने वाली लड़कियों और महिलाओं को अपनी शिकायतें या सुझाव डालने का भरोसा दिलाने वाली ये पेटियां आज धूल फांक रही हैं, कई गायब हैं तो कुछ पर ताले लटके हैं। यह योजना 2022 में मुरार से शुरू की गई थी, लेकिन महज तीन साल में ही पूरी तरह से दम तोड़ चुकी है।
शुरू में आईं थी शिकायतें, बाद में ताले टूटे, कई गायब
जब ये शुरू की गई थी उस समय कुछ शिकायतें स्कूल जाने वाली छात्राओं की तरफ से आईं थीं, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इनके ताले टूटते गए। पुलिस ने भी ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि कई बॉक्स अपने स्थान से पूरी तरह गायब हो चुके हैं, जिससे इस योजना की गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
पुलिस ने झांका भी नहीं, सुरक्षा पर बड़ा सवाल
जेएएच अस्पताल, पदमा विद्यालय, केआरएच कॉलेज, कंपू, मिसहिल स्कूल, कुशवाह मार्केट डीडी नगर, गल्र्स कॉलेज मुरार, महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण स्थानों के अलावा, शहर के हर थाना क्षेत्र में ये पेटियां लगाई गई थीं। दुखद यह है कि पुलिस की टीम इन स्थानों पर शिकायतों को देखने तक नहीं पहुंची। इससे यह स्पष्ट होता है कि महिला सुरक्षा का यह महत्वपूर्ण सिस्टम पूरी तरह से जाम हो चुका है और बेटियों की आवाज अनसुनी रह गई है।
दीपक भार्गव, रिटायर डीएसपी
ऐसी योजनाएं तभी सफल हो सकती हैं, जब उनका नियमित रखरखाव हो। ’बेटी की पेटी’ का यह हश्र सीधे तौर पर महिला सुरक्षा को लेकर पुलिस-प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है। यह सिर्फ एक योजना की विफलता नहीं, बल्कि महिलाओं और छात्राओं के मन में सुरक्षा के प्रति विश्वास की कमी का भी कारण बन रहा है। सवाल यह है कि क्या यह योजना फिर संजीवनी पा सकेगी, या यह सिर्फ एक और अधूरी पहल बनकर इतिहास बन जाएगी।
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