दो साल में खत्म हो गई इन छतरपुर, दमोह और टीकमगढ़ जिलों की हरियाली

बुंदेलखंड की धरती, जो कभी अपनी हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती थी, अब तेजी से हरियाली कम हो रही है। स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021-23 ने मध्य प्रदेश सरकार और वन विभाग के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ दो वर्षों में छतरपुर, दमोह और टीकमगढ़ जिलों में 124 वर्ग किलोमीटर ग्रीन कवर गायब हो गया है। यह गिरावट केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि प्रदेश के पर्यावरणीय संतुलन, मिट्टी की उर्वरता, भूजल स्तर और स्थानीय जलवायु पर गहरा असर छोड़ रही है।

नहीं चेते तो बुंदेलखंड रेगिस्तान बनेगा

वृक्ष मित्र डॉ. राजेश अग्रवाल का कहना है कि यदि तत्काल प्रभाव से हरियाली बचाने के ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले 10 वर्षों में बुंदेलखंड के कई हिस्से अर्ध-रेगिस्तानी क्षेत्र में बदल सकते हैं। उन्होंने कहा वृक्ष संरक्षण अधिनियम 2001 का पालन कागजों में ज्यादा और ज़मीन पर कम होता दिख रहा है। पेड़ कटने की रफ्तार रोपण की तुलना में कई गुना ज्यादा है।

एनजीटी के निर्देश पर बनी हाईपावर कमेटी

हरियाली घटने की लगातार रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश पर एक हाईपावर कमेटी गठित की है। यह कमेटी 25 से अधिक पेड़ों की कटाई के प्रस्तावों की समीक्षा करेगी और जियो टैगिंग रिपोर्ट के बिना किसी भी अनुमति पर रोक लगाएगी। कमेटी की अध्यक्षता नगरीय विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव करेंगे, जबकि नगर प्रशासन आयुक्त सचिव सदस्य होंगे। समिति को शहरी हरियाली संरक्षण के लिए नीति तैयार करने का भी दायित्व सौंपा गया है। 

छतरपुर : 12.02 वर्ग किमी हरियाली गायब

छतरपुर जिले में हरियाली 12.02 वर्ग किलोमीटर कम हो गई है। यह शहरों के फैलाव, अवैध पेड़ कटाई और निर्माण कार्यों में हरित क्षेत्र की अनदेखी के कारण हुई है। पेड़ों की कटाई से इलाके के जलस्रोतों पर भारी असर पड़ा है, जिससे बरसाती जल का संचयन और भूजल पुनर्भरण प्रभावित हुआ है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अब पेड़ों की निगरानी और फॉरेस्ट सर्वे के लिए ड्रोन और जियो टैगिंग तकनीक अपनाई जा रही है। 

दमोह : अधिक गिरावट, 85.29 वर्ग किमी खत्म

दमोह जिले में ग्रीनरी में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। यहां 85.29 वर्ग किलोमीटर हरित क्षेत्र खत्म हुआ है। यह कमी न केवल पर्यावरण, बल्कि कृषि व्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी है। ग्रामीण इलाकों में पेड़ों की कटाई और खेती के लिए जंगलों का दोहन बढ़ गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे जिले में तापमान मैं 1.5 डिग्री तक वृद्धि दर्ज की गई है और आने वाले वर्षों में सूखे की संभावना और बढ़ सकती है। 

टीकमगढ़ : 26.79 वर्ग किमी पेड़-पौधे खत्म

टीकमगढ़ जिले में 26.79 वर्ग किलोमीटर हरियाली गायब हो गई है। यहां शहरी निकायों ‌द्वारा सडक़ चौड़ीकरण, कॉलोनियों के निर्माण और अवैध अतिक्रमण ने जंगलों की सीमाओं को सिकोड़ दिया है। कई जगहों पर स्थानीय पेड़ प्रजातियों की जगह सजावटी पौधों का रोपण किया जा रहा है, जिससे जैव विविधता प्रभावित हो रही है। जिससे भू-जल स्तर पर भी प्रभाव पड़ रहा है। लगातार भूजल स्तर गिरते जा रहा है। 

हर नागरिक बने हरियाली का प्रहरी

सामाजिक संगठनों ने अभियान चलाकर स्थानीय लोगों से पेड़ बचाने की अपील की है। एक व्यक्ति एक पेड़ जैसी पहल शुरु की गई है, जिसके तहत हर नागरिक से वर्षा ऋतु में कम से कम एक पेड़ लगाने और उसकी देखभाल करने का संकल्प लिया जा रहा है। यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों की चेतावनी नहीं, बल्कि एक गंभीर संकेत है कि यदि अब भी समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य खतरे में पड़ सकता हैं।