गोबर से उभरती नई संभावनाएँ, जानिए क्या क्या हो सकती है संभावनाएं ?
मध्यप्रदेश में अब गोशालाएं सिर्फ गोवंशों का आश्रय स्थल नहीं रहीं बल्कि नए नए नवाचार और स्वावलंबन के प्रयोगशाला बनती जा रही हैं। इसका ताजा उदाहरण नरसिंहपुर जिले से सामने आया है जहां त्रिनेत्री सेवा समिति डांगीढाना द्वारा संचालित त्रिनेत्री गोशाला बहोरीपार, जहां गोवंश संरक्षण के साथ.साथ गोबर आधारित वैकल्पिक आय मॉडल विकसित किए जा रहे हैं। पशुपालन विभाग के मार्गदर्शन में यहां वर्मी कम्पोस्ट खाद निर्माण की यूनिट शुरू कर गोशाला ने स्थायी आय की नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। गोशाला में वर्तमान में 200 से अधिक गोवंश आश्रय पाए हुए हैं। संख्या बढऩे के साथ ही पीछे की ओर एक नया सेट भी तैयार किया जा रहा है ताकि अतिरिक्त गोवंश को सुरक्षित स्थान मिल सके। इन्हीं प्रयासों के बीच गोशाला को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है,गोबर से वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन। यह न केवल गोबर का वैज्ञानिक उपयोग है, बल्कि जैविक खेती को बढ़ावा देने वाला पर्यावरण-अनुकूल कदम भी सामने है।
स्वावलंबन के साथ- साथ उत्पादक गोवंश के संवर्धन पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है।नस्ल सुधार के लिए भारतीय मूल का उत्तम साहीवाल नंदी गोशाला में रखा गया है। चारे की निरंतर उपलब्धता के लिए 10 एकड़ में सुपर नेपियर घास का वैज्ञानिक प्रबंधन किया जा रहा है।सभी गोवंश प्रतिदिन गोचारण के लिए खुले क्षेत्र में छोड़े जाते हैं, जिससे उनकी शारीरिक सक्रियता और स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।
बर्मी कम्पोस्ट के बाद समिति अब गो.कास्ट, गोबर के गमले, दीये और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है। जनवरी तक इसका उत्पादन प्रारंभ करने का लक्ष्य है। ये उत्पाद न केवल बाजार में पहचान बनाएंगे, बल्कि गोशाला की आय को और भी मजबूत आधार देंगे।
त्रिनेत्री सेवा समिति वर्तमान में जिले की चार गोशालाओं में लगभग 600 गोवंश का संचालन व संवर्धन कर रही है। समिति का लक्ष्य है कि परंपरागत गोसेवा को आधुनिक तकनीकों के साथ जोडकऱ एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जाए जो व्यवस्थित आर्थिक रूप से टिकाऊ और पर्यावरण हितैषी हो।
संवाददाता दीपक मालवीय

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