मंदिर में श्रद्धा के नाम पर दी जाती थी महिलाओं की बलि, पत्थरों में कैद है सती प्रथा की दर्दनाक कहानी
राजस्थान की तरह सती प्रथा के दर्दनाक निशान अब मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सिंहपुर क्षेत्र में भी देखने को मिलते हैं। शहडोल मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित पंचमठा मंदिर परिसर के भीतर बने सती
चबूतरे आज भी उस दौर की खामोश गवाही देते हैं, जब महिलाओं को पति की चिता में जिंदा जलाया जाता था।
इन पत्थर के चबूतरों पर उकेरे गए चिड़ियों और महिला आकृतियों के निशान बताते हैं कि यहां कभी महिलाएं सती हुई थीं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके पूर्वजों के मुताबिक यहां कई महिलाएं सती हुई थीं। तब लोग इसे पुण्य समझते थे। ये सती चबूतरे बहुत पुराने हैं और अब इनकी हालत खस्ता है।
नीय लोगों का कहना है कि यह स्थल वर्षों पहले पुरातत्व विभाग के अधीन घोषित किया गया था, लेकिन आज इसकी देखरेख नाम मात्र की है। दीवारें टूटी पड़ी हैं, शिलालेखों पर काई जम चुकी है और कई लोग अनजाने में यहां पूजा करने पहुंच जाते हैं।
पुरातत्वविद् डॉ. रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड, मालवा और महाकौशल क्षेत्रों में सती प्रथा के सैकड़ों प्रमाण मिलते हैं जिनमें सिंहपुर का यह स्थल भी प्रमुख है। इतिहासकारों के अनुसार सती प्रथा भारत में 4वीं से 18वीं शताब्दी तक चली और इसे सामाजिक परंपरा के रूप में अपनाया गया।
अंग्रेज शासनकाल में राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारकों के प्रयासों से इसे 1829 में प्रतिबंधित किया गया,आज पंचमठा मंदिर के ये सती चबूतरे जर्जर अवस्था में हैं। पर अपनी खामोशी में एक सवाल छोड़ते हैं कि क्या हम अपनी ऐतिहासिक भूलों से सच में सीख पाए हैं? जरूरत इस बात की है कि इन दुर्लभ धरोहरों को संरक्षित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि कभी श्रद्धा के नाम पर महिलाओं की बलि दी जाती थी।
संवाददाता :-आशीष सोनी

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