गाने का परवान ऐसा चढ़ा की उम्र के तीसरे पड़ाव पर सिंगरौली की लता नाम से नवाजा गया
कहते है की कुछ कर गुजरने की ललक हो और मन में आत्म विश्वास हो तो सपना भी पूरा हो जाता है। कुछ ऐसी ही लगन संगीत से हुई तो छोटी सी किशोरी सुशीला सिंह घर से बिना बताए ही एनसीएल के एक कार्यक्रम में गाने के लिए चली गयी। घर लौटी तो माता जी ने जमकर डांट लगाई और फिर दोबारा इस तरह नही करने की हिदायत दे दी। बचपन की संगीत मोहब्बत उम्र के 30वें बरस तक मन में हिलोरे लेता रहा लेकिन अपने शौक को सार्वजनिक कर पाने की हिम्मत नही जुटा पाई। इस बीच पढ़ाई लिखाई पारिवारिक जिम्मेदारी और फिर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करते हुए विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा बनीं।
ईस्वी सन 2018 में एक बार फिर सुशीला सिंह के मन में गाना गाने का शौक उभर कर तब बाहर आया जब उनकी दोस्त बिन्दु ने उन्हें गाना गाने के ऑनलाइन एप्लीकेशन के बारे में बताया। जिस पर गाने का रियाज लगातार जारी रखा और अपने कई वीडियोज उन्होनें अपनी फेसबुक पर पोस्ट किए तो लोगों ने सराहा और आगे गायन के क्षेत्र में बढ़ने के लिए प्रेरित किया, इसके बाद उन्होंने कई कार्यक्रमों में फिल्मी गानों की प्रस्तुतियां दी। मंच पर सार्वजनिक गायन की हिम्मत जुटी तो फिर छोटे बड़े कार्यक्रमों में स्वागत गीत गाने के लिए भी बुलाया जाने लगा। जिसमें सुशीला सिंह को बतौर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में जानने वाले जिले के पहले सहायक जनसम्पर्क अधिकारी बीके शर्मा ने कई सरकारी कार्यक्रमों में मंच प्रदान करने का अवसर दिया।
गाने गाने के शौक के बीच विधानसभा चुनाव आए। इसी दौरान उन्हें मतदाता जागरूकता के लिए कुछ गीत गाने अवसर जिला प्रशासन के द्वारा दिया गया। तब तक सुशीला सिंह इस विधा में अपना शौक रखने वाले कई संगीत शिक्षकों व युवाओं के सम्पर्क में आ चुकी थी। अपने साथियों से मतदाता जागरूकता गीतों को बनाने और गाने के लिए चर्चा की तो दो दिन की मेहनत कर पांच गीत तैयार किए। तत्कालिक चुनाव प्रभारी एडीएम श्री सिसौदिया ने फोन पर कह दू तुम्हें या चुप रहूं,वोट अपना तुम दे आओ...के दो अंतरे सुने तो रिकार्डिंग करा कर देने के लिए कहा जिसके बाद विधान सभा चुनाव में मतदाताओं को जागरूक करने के लिए सुशीला सिंह के गीतों को सुना जाने लगा।
जिला प्रशासन के छोटे बड़े कार्यक्रमों में बिना किसी राशि लिए स्वागत गीत,राष्ट्रीय पर्व, सिंगरौली महोत्सव,युवा महोत्सव, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस व अन्य कार्यक्रमों में मौका दिया जा रहा था। इसी बीच एनसीएल मुख्यालय के कार्यक्रमों में स्थानीय कलाकारों को मंच देने के प्रयासों में सुशीला को मौका मिला। इस दौरान उन्होंने स्वयं को तराशा, जमकर रियाज किया अपने पारिवारिक दायित्वों के साथ कई कार्यक्रमों में अपने गीतों की प्रस्तुतियों से एक अलग पहचान बनाई।
सुशीला सिंह बताती है कि मैं स्वयं गाने नही बना सकती लेकिन पुराने फिल्मी गानें हो या फिर देशभक्ति अथवा भजन उन्हें हू-बहू गाने का प्रयास आज भी जारी है। जो अनवरत जारी रहेगी एक कलाकार कभी सम्पूर्ण नही होता है, उसकी साधना जीवन पर्यंत चलती है।अब तो लोग सिंगरौली की लता नाम से भी बुलाते है।
संवाददाता : आशीष सोनी
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