चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर देखो, निशान हमारा है
नाग-सपेरों का ये देश, कीर्तिमान नित गढ़ रहा हैं,
धरती से सूरज की दूरी को, धुरी से नाप रहा हैं।
जिसे कहते थे भूखा-पिछड़ा, वो आगे बढ़ रहा हैं,
भारतवर्ष का तिरंगा, अब चाँद पर लहरा रहा हैं॥
इसरो का ”द्रोण” संकल्प, सिद्धि तक जा रहा हैं,
साइकिल का सफर, आसमां तक भेद रहा हैं।
कलाम साहब का सपना, साकार दिख रहा हैं,
भारतवर्ष का तिरंगा, अब चाँद पर लहरा रहा हैं॥
जो कहते थे अनपढ़, गवार, कभी हमें आदिवासी,
जब खुदी ज़मीं तो, हम ही थे श्रृष्टि के मूलनिवासी।
हड़प्पा-जोदड़ों के खण्डहर, बयां करें हस्ती हमारी,
कैसे थे हमारें घर-घरौंदे, कैसी थी बस्ती हमारी॥
चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर, देखों निशान हमारा हैं,
जो नासा का भी नशा उतारे, वो इसरो हमारा हैं।
जिनके झंडे पर निशां चाँद, बताओ वे अब कहाँ हैं,
उनसे जाकर कह दो, चाँद पर तिरंगा हमारा हैं॥
शशीधर, चन्द्रशेखर के, शिखर पर चाँद हमारा हैं,
जो मंगल ने दिखाया सत्तावन में, वो जोश हमारा हैं।
पटेल-सुभाष-टैगोर-तिलक का, राष्ट्र तप हमारा हैं,
सुखदेव-भगत-राजगुरु का, क्रांति ज्वार हमारा हैं।
उसी क्रांति ज्वार को हमनें, चाँद तक पहुँचाया है,
जो इसरो का गान गाये, जो शान से फहरा रहा हैं।
जाकर हम पर हंसने वालो से कह दो,
तिरंगा हमारा, चन्द्रयान हमारा, चाँद भी हमारा हैं॥
लेखक-
नितिन श्रीराम वाडले
बुरहानपुर , मध्यप्रदेश
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