शिक्षक ( गुरु) की महिमा


स्याही बिना है कलम अधूरी, गुरु बिन अधूरा ज्ञान है।

शब्द अधूरे अर्थ बिना, गुरु ही पू्र्ति की खान है।

 

इश्वर से भी ऊंचा जगत में, गुरु का है स्थान।

गुरू से ऊंचा कोई नहीं, और शिक्षा से वड़ा नहीं कोई वरदान।


हम कच्चे मिट्टी के घड़े, गुरू देते हैं आकार।

जो जैसा सवंर गया, सो तैसा व्यवहार।


गुरू की महिमा अपार है, शब्दों में कैसे वयां करूं।

गुरू से जुड़ा संसार है, सदा गुरु का सम्मान करूं।


दुनिया में नहीं ज्ञान सा, कोई बड़ा उपहार।

अंधेरा मिटे अज्ञान का, गुरु ज्ञान का आधार।


लेखक:- 

राजधर अठया 

मड़ियादौ , दमोह, मध्यप्रदेश