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बेशक कंटक हो राहों पर चलना है...

 


बेशक कंटक हो राहों पर चलना है


संघर्षों के साए में तुमको  पलना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।।


राह तुम्हारी मुश्किल है पर कठिन नहीं,

थोड़ी पीड़ा क्या तुमको है सहन नहीं।

पीछे मुड़कर देख रहा क्या करना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।।


सूरज से क्या सीखा तुमने सोचो तो,

अपने मन के अधियारे को नोचो तो,

बादल बिपदा के आएं न डरना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।


कल- कल छल- छल करती देखो नदी चली,

पर्वत और पठारों तक से नहीं डरी।

प्यास बुझाना धरती की ये करना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।


क्या सोचा तुमने की सब मिल जाएगा।

संघर्षों के बिना नहीं कुछ पाएगा।।

उठकर गिरना, गिरकर उठना,  बढ़ना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।।


उस किसान से सीखो जो न हारा है।

कितनी बारी उसको प्रकृति ने मारा है।

लक्ष्य पेट की भुख उसे बस हरना  है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।


नींव के पत्थर ने तुमको है ललकारा।

उसके दम से खड़ा हुआ है जग सारा।

उससे सीखो कैसे तुम्हें सम्हलना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।


खुद के मन के तिमिर हरो तब पाओगे।

जग में ईश्वर सम  तुम पूजे जाओगे।

अप्प दीप बन तुमको नित ही जलना है।

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।।


किसने खोया किसने पाया क्या करना,

अपने हिस्से की मेहनत हमको करना,

असफल हुए वो खाई हमको भरना है,

बेशक कंटक हो राहों पर चलना है।।


लेखक 

योगेश योगी किसान

सतना, मध्यप्रदेश

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