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प्रेम क्या है....???

 


प्रेम क्या है....???



प्रेम क्या है....???

प्रेम काव्य शास्त्र है...

जिस प्रकार काव्य के नौ रस होते हैं....श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत ।

प्रेम भी काव्य शास्त्र के जैसे होता है जिसमें काव्य के सभी गुणों के साथ साथ सभी नवरसों का भी समावेश होता है....


एक असल प्रेम संबंध में केवल श्रृंगार या हास्य या शांत रस के भाव ही नहीं होते वरन करुण,अद्भुत, रौद्र,वीर,भयानक और वीभत्स रस भी विद्यमान होते हैं.... प्रेम सम्बन्ध हमारे मन को केवल आंनद, उत्साह, आश्चर्य या खुशी से नहीं भरते वरन इस संबंध में भय, घृणा, क्रोध, जुगुप्सा(निंदा), शंका, शोक, ग्लानि जैसे भाव भी कभी ना कभी आते ही हैं....और इन सब भावों के होने के पश्चात् भी यदि दो लोगों के बीच का संबंध समय के साथ एकसार और स्थिर बना रहता है तभी वह एक सच्चा प्रेम सम्बन्ध होता है...इसके अतिरिक्त जहाँ एक ओर सच्चे प्रेम में भक्ति भाव होता है...तो दूसरी ओर वात्सल्य भी होता है ...सच्चे प्रेम में डूबे दो लोग कभी-कभी सरल वात्सल्य से ओतप्रोत हो जाते हैं जिस तरह का वात्सल्य एक माँ और पुत्र के बीच होता है तो कभी ईश्वरीय प्रेम की पराकाष्ठा को छू जाते हैं जैसा भक्ति भाव ईश्वर और उसके भक्त के बीच होता है... निष्कर्षतः इन सभी भावों का,रसों का समायोजित मिश्रण है प्रेम..


लेखिका 

शारदा कनोरिया 

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