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शृंगार रस से ओत-प्रोत रचना ..



कौन कहता है मै तुझसे प्यार नहीं करता


कौन कहता है मै तुझसे प्यार नहीं करता ।

हाँ मै  बेबस हूँ तभी तो बयां नहीं करता ।। 


दिल दरिया है मेरा सागर से भी गहरा है ।

पर ये इश्क में गोता लगाया नहीं करता ।।  


कौन कहता है मै तुझसे प्यार नहीं करता......


मेरे सीने में जो धड़कता छोटा सा दिल ।

बेबसी में है वो बस याद तुम्हे ही करता ।।


रूठ जाती थी जब तुम मुझसे कभी अगर ।

तो याद में तेरे आँसू को बहाया करता ।।


कौन कहता है मैं तुझसे प्यार नहीं करता.....


लड़खड़ाए जब भी कदम तेरे राह में गर ।

तो उन कदमों का सहारा बना जाया करता ।।


भींगा बदन तेरे सावन के उस बारिश में ।

तो बन मैं छतरी तुझे बचाया ही करता ।।


कौन कहता है मैं तुझसे प्यार नहीं करता.....


जब जब तेरे ज़ुल्फों को हवावों ने बिखेरा ।

कंघा बन मेरे उंगलिया तुझे स्वरां करता ।।


कौन कहता है मै तुझसे प्यार नहीं करता ।

हाँ मै  बेबस हूँ तभी तो बयां नहीं करता ।।


 लेखक :-

मनोज सिंह 'यशस्वी'

जमशेदपुर, झारखण्ड

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