प्रधानमंत्री के क्षेत्र गुजरात में इंदौर का शराब माफिया करता है शराब तस्करी



मध्य प्रदेश के इंदौर का एक शराब माफिया इतना पनप गया है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह क्षेत्र गुजरात में शराब की तस्करी करने लगा और शराब की तस्करी में बाहुबली विधायक का संरक्षण शराब माफिया को प्राप्त है। ऐसे में पुलिस भी शराब माफिया के कॉलर पर हाथ डालने में पीछे हटती है। जहां इंदौर में शराब माफिया सूरज रजक का एक ट्रक पुलिस जब्त करती है, जिसमें 53 लाख रुपए की शराब भरी होती है, उसमें ड्राइवर शराब दुकान पर काम करने वाला और ट्रांसपोर्टर को आरोपी बना देती है, लेकिन असल आरोपी सूरज रजक को छोड़ देती है।

सवाल खड़े होते हैं कि सारे तार जब सूरज रजत से जोड़ते हैं तो क्यों शराब माफिया को पुलिस गिरफ्तार नहीं करती, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र में शराब की तस्करी कर रहा है। इस मामले में अब आबकारी विभाग की संदिग्ध भूमिका और सत्ता के संरक्षण में पनपते शराब माफिया का खुला पोस्टमार्टम बन चुका है। थाना एरोड्रम के अपराध क्रमांक 339/2024 में दर्ज बयानों में जिस शख्स का नाम बार-बार सामने आ रहा है, वही आज भी कानून की पकड़ से बाहर है- शराब माफिया सूरज रजक।

आरोपियों के बयान से हुआ खुलासा

26 अप्रैल 2024 को दर्ज आरोपियों के बयानों ने पूरी सप्लाई चेन खोल दी। आरोपी ने साफ कहा कि इंदौर से गुजरात शराब की तस्करी सूरज रजक के निर्देश पर की जाती थी और यह पहली बार नहीं था। पहले भी शराब गुजरात भेजी जा चुकी है। शराब की खेप सूरज रजक की वाईन शॉप से ही रवाना होती थी, उसी के नेटवर्क से ट्रक तय होते थे और उसी के मैनेजर के जरिए ड्राइवर और ट्रांसपोर्टर सेट किए जाते थे। हर ट्रिप पर 60 हजार रुपये का तय सौदा था। आयशर ट्रकों में नीचे शराब और ऊपर परचून का माल- ताकि रास्ते में कोई रोके नहीं और अगर रोके भी, तो “सेटिंग” काम आ जाए। लेकिन यहां कहानी सिर्फ पुलिस तक सीमित नहीं है।

आबकारी विभाग की मिलीभगत! बाहुबली विधायक का दबाव

सवाल आबकारी विभाग पर भी खड़ा है। जिस शराब की तस्करी हो रही थी, उसकी सप्लाई दुकान से कैसे निकली ? स्टॉक कैसे “कागजों में सही” रहा और जमीन पर गायब होता रहा ? यह बिना आबकारी विभाग की मिलीभगत कैसे संभव है ? कौन आंख मूंदे बैठा था, जब शराब दुकान से ट्रक भर रहे थे ? कौन मौन था, जब स्टॉक रजिस्टर और जमीन की हकीकत में फर्क दिख रहा था ? आरोपियों के बयानों में मोबाइल नंबर दर्ज हैं, कॉल रिकॉर्ड के संकेत हैं, ट्रकों की जानकारी है, ड्राइवरों और ट्रांसपोर्टरों के नाम हैं। यानि पूरा नेटवर्क कागज पर दर्ज है। फिर भी पुलिस का हाथ सिर्फ छोटे लोगों तक पहुंचा। सूरज रजक पर न पूछताछ, न गिरफ्तारी, कुछ नहीं! सूत्रों की मानें तो जैसे ही केस सूरज रजक के नाम पर पहुंचा, बाहुबली विधायक का दबाव शुरू हो गया। पुलिस की चाल थम गई और आबकारी विभाग की चुप्पी और गहरी हो गई। प्रेस नोट में पुलिस ने “बड़ी कार्रवाई” की कहानी रच दी, लेकिन बाद में उसी कहानी को फाइलों में दफना दिया गया।

इंदौर में कानून से ऊपर बैठी है ये तिकड़ी!

अब यह सवाल सरकार से है कि क्या आबकारी विभाग सिर्फ वसूली के लिए है ? क्या माफिया की दुकानें इसी तंत्र की छाया में फलती हैं ? और क्या पुलिस सिर्फ छोटे मोहरों को कुचलने के लिए है ? 53 लाख की यह जब्ती अब परीक्षा बन चुकी है। या तो शराब माफिया सूरज रजक जेल जाएगा या फिर यह मान लिया जाएगा कि इंदौर में कानून से ऊपर शराब माफिया, आबकारी विभाग और राजनीतिक संरक्षण की तिकड़ी बैठी हुई है।

खेल अभी भी जारी…

मेमोरेंडम में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि यह पहली बार नहीं है कि इंदौर से शराब गुजरात जा रही थी। इसके पहले भी ट्रक ड्राइवर ने कबूल किया है कि वह तीन बार ट्रक गुजरात में छोड़कर आ चुका है और यह काम सूत्र बताते हैं कि आज भी जारी है लेकिन आबकारी विभाग और पुलिस की आंखें पूरी तरह बंद है। हालांकि पुलिस अभी इस पूरे मामले की जांच करने में जुटी हुई है अब देखना होगा कि इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार सिंह क्या सूरज रजक को इस पूरे मामले में आरोपी बनाते हैं या फिर मैनेजर ड्राइवर और ट्रांसपोर्टर तक ही पूरी कहानी सिमटकर कर रह जाती है।

संवाददाता :- आशीष सोनी