राजनीतिक उदासीनता और प्रशासनिक सुस्ती का काला सच, चितरंगी का न्यायालय फाइलों के जंगल में गुम न्याय
सिंगरौली जिले चितरंगी की जनता शायद देश की उन दुर्भाग्यपूर्ण आबादियों में से है, जिन्हें न्याय मिलने से पहले न्यायालय के लिए भी लड़ना पड़ रहा है। बात कोई अनुमान या अफवाह नहीं—दस्तावेज़ मौजूद हैं, आदेश मौजूद है, भवन मौजूद है, पद मौजूद है… लेकिन न्यायालय नहीं।
क्रमांक .बी/3323 दिनांक 31 जुलाई 2024 को उच्च न्यायालय जबलपुर से स्पष्ट आदेश जारी हुआ— व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड का पद स्वीकृत,अमला स्वीकृत,पूरा वित्तीय भार पत्रक संलग्न कर भोपाल भेज दिया गया।
सोचिए, शासन का काम खत्म,भवन पहले से तैयार।अब आगे जिम्मेदारी किसकी थी ?विधायक की ? सांसद की ? मंत्री की ? जिला प्रशासन की ? या फिर किसी अदृश्य शक्ति की ?
लेकिन इन सबके बीच न्यायालय आज भी ताला लगाए खड़ा है।नेताओं की चुप्पी—सवालों से बड़ी, जवाबों से भारी-त्रस्त बहुसंख्यक आदिवासी जनता कहती है चुनाव के वक्त चितरंगी के नेता न्याय, विकास, प्रशासनिक सुविधा, सबकी बात करते हैं।लेकिन जब न्यायालय जैसा मूलभूत संस्थान स्थापित करने की बात आती है,तो वही नेता मंत्री गहरी चुप्पी साध लेते हैं। आखिर क्यों ?
क्या उन्हें यह दिखाई नहीं देता कि गरीब आदिवासी महिला 90 किलोमीटर दूर दूसरे विधानसभा फरियाद लेकर जाती है।
वृद्ध गवाह सड़क पर गिरते–पड़ते कोर्ट पहुंचते हैं- पीड़ित परिवार न्याय की तलाश में जलील होते हैं।- क्या नेताओं को लगता है कि चितरंगी की जनता जमीनी सच जान ही नहीं पाएगी ? भवन है, पैसा भी खर्च हुआ—अब यह किसकी देन है कि न्यायालय धूल खा रहा है।एक ओर प्रदेश में “गुड गवर्नेंस” के दावे,दूसरी ओर चितरंगी का न्यायालय भवन खंडहर में बदलने की कगार पर।
सरकारी खजाने से लाखों खर्च कर बनी यह इमारत आज सिर्फ अफसरों की उदासीनता, और नेताओं की प्राथमिकता सूची में नीचे धकेले गए “न्याय” की तस्वीर है।
फाइल कहां अटकी ? जिम्मेदार कौन - जब आदेश जारी हो चुका है,जब अमला स्वीकृत है,जब भवन तैयार है,जब वित्तीय भार पत्रक पहुँच चुका है,तो एक ही सवाल बचता है—फाइल किसके पास, क्यों और किसके लिए रोकी गई ?
यह सवाल सिर्फ तकनीकी नहीं,यह सवाल न्याय की आत्मा से जुड़ा है और यह सवाल चितरंगी की जनता पूछ रही है।
चितरंगी की जनता न्याय की भीख नहीं, अधिकार मांग रही है- व्यवहार न्यायालय की स्थापना किसी का एहसान नहीं, यह चितरंगी के हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है।
लेकिन नेताओं की उदासीनता और अफसरों की फाइल–मस्ती ने इसे मजाक बना दिया है।नेता नवीन भवन उद्घाटन में रुचि रखते हैं,लेकिन शुरुआत सुनिश्चित करने में नहीं।
समापन—जिस दिन जनता जवाब मांगेगी, बहुतों की कुर्सियां कांपेगी - चितरंगी को न्यायालय चाहिए,फोटो–आप नहीं, वादे नहीं, भाषण नहीं और सबसे बड़ी बात— जितनी देर यह न्यायालय बंद है, उतनी देर न्याय भी बंद है।
अब फैसला जनता को करना है- क्या वह इस उदासीनता को और सहन करेगी ? या नेताओं और अधिकारियों से वह सधा हुआ, स्पष्ट सवाल पूछेगी—“न्यायालय की चाबी किसके पास है, और वह खोल क्यों नहीं रहा ?”
संवाददाता :- आशीष सोनी

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