उड़न सिख मिल्खा सिंह जयंती: भारतीय एथलेटिक्स के अमर प्रतीक को देश का नमन
आज भारत महान धावक मिल्खा सिंह की जयंती मना रहा है—एक ऐसा नाम, जिसने दौड़ को सिर्फ खेल नहीं रहने दिया, बल्कि इसे देशभक्ति और जज़्बे की पहचान बना दिया। “उड़न सिख” के नाम से दुनिया भर में मशहूर मिल्खा सिंह ने भारतीय एथलेटिक्स को वह ऊँचाई दी, जिसे आज भी युवा खिलाड़ी प्रेरणा के रूप में देखते हैं।
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर दौड़ जीतकर मिल्खा सिंह पहले भारतीय एथलीट बने जिन्होंने ट्रैक एंड फील्ड में स्वर्ण पदक हासिल किया। इसके बाद 1960 रोम ओलंपिक में 400 मीटर की ऐतिहासिक दौड़ आज भी खेल इतिहास की सबसे रोमांचक दौड़ों में गिनी जाती है। मिल्खा सिंह एक बाल-पल के अंतर से पदक से चूक गए, लेकिन उनके प्रदर्शन ने भारत का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया।
उनका जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। विभाजन के दौर में माता-पिता को खोने के बाद मिल्खा सिंह ने सेना में भर्ती होकर अपना जीवन नए सिरे से शुरू किया। यहीं से उनकी दौड़ने की प्रतिभा पर ध्यान गया और देखते ही देखते वे एथलेटिक्स के महान सितारे बन गए। उनकी लगन और मेहनत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे दिन में 5 से 7 घंटे अभ्यास करते थे—धूप, बारिश, ठंड… कोई बाधा उन्हें रोक नहीं पाती थी।
मिल्खा सिंह को “उड़न सिख” की उपाधि पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने दी थी। उन्होंने कहा था—“आज एक सिख उड़ा है।”यह उपाधि आज भी उनके नाम के साथ सम्मान की तरह जुड़ी हुई है।
देशभर में आज उनकी जयंती पर खेल संस्थान, स्कूल और खेल प्रेमी उन्हें याद कर रहे हैं। युवा खिलाड़ियों को उनके आदर्श—संघर्ष, अनुशासन, मेहनत और कभी न हार मानने की भावना—से प्रेरित किया जा रहा है।
मिल्खा सिंह ने अपने जीवन से यह साबित किया कि यदि सपने बड़े हों और प्रयास निरंतर, तो एक आम इंसान भी दुनिया की रफ्तार पर राज कर सकता है।आज की जयंती सिर्फ स्मरण नहीं, बल्कि भारत के युवाओं के लिए उड़ान भरने का संदेश है।

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