व्यक्ति का व्यापार डूबा तो सफल मित्र ने दी सीख: कथा:- जब इंसान सीखना बंद करता है तो वह आगे बढ़ने की क्षमता भी खो देता है...


पुराने समय में एक गांव में दो मित्र थे। दोनों की कुछ बड़ा करने की चाह थी, इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि गांव से बाहर जाकर व्यापार करेंगे। उन्होंने योजना बनाई कि दोनों अलग-अलग दिशाओं में जाएंगे, व्यापार करेंगे और कुछ महीनों बाद वापस अपने गांव लौटकर आएंगे, अपने अनुभव बताएंगे। योजना बनने के बाद दोनों मित्र अपनी-अपनी राह पर निकल पड़े। शुरुआती दिनों में किस्मत ने दोनों का भरपूर साथ दिया। व्यापार तेजी से बढ़ा और लाभ भी अच्छा होने लगा। इसी सफलता ने एक मित्र के मन में अहंकार भर दिया। उसे लगा कि अब उसका व्यापार कभी नहीं डूबेगा, वह बहुत जल्दी अमीर बन जाएगा। सफलता के नशे में उसने मेहनत और सुधार करना लगभग बंद कर दिया। वह लापरवाह होने लगा और अपने व्यापार में आने वाले छोटे बदलावों को भी नजरअंदाज करने लगा। कुछ समय बाद बाजार में मंदी का दौर आया। मांग घटी, खर्च बढ़े और प्रतिस्पर्धा कठिन हो गई। अहंकार में डूबे मित्र ने जब तक स्थिति संभालने की कोशिश की, तब तक देर हो चुकी थी। उसका व्यापार घाटे में जाने लगा और धीरे-धीरे उसने अपनी लगभग पूरी पूंजी खो दी। हताश और परेशान होकर उसे अपने मित्र की याद आई, जो दूसरी दिशा में व्यापार कर रहा था। वह सलाह लेने उसके पास पहुंच गया। वहां जाकर उसने देखा कि मंदी के दौर में भी उसका मित्र लाभ कमा रहा है। उसे आश्चर्य हुआ कि जब बाजार सबके लिए कठिन है, तब उसका मित्र कैसे सफल हो रहा है? उसने कारण पूछा।

सफल मित्र ने शांत भाव से कहा कि मैंने सफलता को सिर पर नहीं चढ़ने दिया। मैं लगातार सीखता रहा, नई रणनीतियां अपनाता रहा और हर स्थिति का सोच-समझकर सामना किया। छोटी-सी भी लापरवाही नहीं की और अपनी गलतियों से तुरंत सीख ली। इसी कारण मंदी में भी मेरा व्यापार चल रहा है। पहला मित्र ये सुनकर समझ गया कि उसकी असफलता का कारण अहंकार, लापरवाही और सीखना बंद कर देना था। उसने प्रेरणा लेकर दोबारा मेहनत शुरू की। सीखते हुए, योजनाएं बनाते हुए और गलतियों से बचते हुए उसने अपने व्यापार को फिर से खड़ा कर दिया।



कथा की सीख:

हमेशा सीखते रहें: जीवन बदलता रहता है, परिस्थितियां बदलती रहती हैं। जो व्यक्ति सीखना नहीं छोड़ता, वही बदलते समय के साथ खुद को ढाल कर सफलता पाता है। जब इंसान सीखना बंद करता है, वह आगे बढ़ने की क्षमता भी खो देता है

सफलता के समय अहंकार न करें: सफलता स्थायी नहीं होती। यदि आप विनम्र रहते हैं, तो आप अधिक स्पष्टता से अवसरों और चुनौतियों को देख पाते हैं। कभी भी सफलता के दिनों में अहंकार न करें, हमेशा विनम्र रहें।


◾नियमित मूल्यांकन करें: अपने काम का समय-समय पर मूल्यांकन करें। क्या सही चल रहा है? कहां सुधार की जरूरत है? ये आदत संकट आने से पहले ही हमें तैयार कर देती है।


◾लापरवाही से बचें: छोटी-छोटी गलतियां बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं। इसलिए किसी भी कार्य में सावधानी जरूरी है, हमेशा सतर्क रहें।


◾गलतियों से सीखें: गलती होना स्वाभाविक है, लेकिन उससे सीख न लेना हानिकारक है। हर गलती आपके लिए नया सबक लेकर आती है, उससे सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।


◾नई चीजें अपनाने का साहस रखें: बदलते समय में नई तकनीक, नए तरीके और नई योजनाओं को अपनाना जरूरी है। जो व्यक्ति बदलाव को स्वीकार करता है, वही आगे बढ़ता है।


◾भावनाओं को नियंत्रण में रखें: अहंकार, अति-उत्साह और डर, ये तीनों भाव हमारे निर्णयों को प्रभावित करते हैं। शांत दिमाग से लिया गया निर्णय अक्सर सही सिद्ध होता है।


◾नियमित मेहनत करें: निरंतरता सफलता की कुंजी है। छोटे-छोटे ही सही, लेकर नियमित प्रयास करने से ही बड़ी सफलता मिलती है।


◾संकट में अवसर खोजें: मंदी या कठिन समय में भी विकास के रास्ते होते हैं, यदि दृष्टीकोण सकारात्मक हो तो हर चुनौती नया अवसर बन सकती है।


◾अच्छे साथियों से सीखें: हम जिन लोगों के साथ रहते हैं, उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। ऐसे लोगों के साथ रहें, जो आपको प्रेरित करें और आगे बढ़ने के लिए सही सलाह भी दें।


- कृपाल पटैल