"अरावली राजस्थान का रक्षा कवच", अशोक गहलोत बोले- पूरे उत्तर भारत के लिए गंभीर खतरा
"खनन बेरोकटोक शुरू होंंगी"
अशोक गहलोत ने कहा कि सबसे भयावह तथ्य यह है कि राजस्थान की लगभग 90% अरावली पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं। यदि इन्हें परिभाषा से बाहर कर दिया गया तो यह केवल नाम बदलने का मामला नहीं रहेगा, बल्कि इन पहाड़ियों से कानूनी संरक्षण भी खत्म हो जाएगा। इसका सीधा मतलब यह होगा कि इन क्षेत्रों में वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं रहेगा और खनन गतिविधियां बेरोकटोक शुरू हो सकेंगी।
"पहाड़ की पहचान उसकी ऊंचाई से नहीं"
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी पहाड़ की पहचान उसकी ऊंचाई से नहीं, बल्कि उसकी भूगर्भीय संरचना से होती है. एक छोटी चट्टान भी उसी टेक्टोनिक प्लेट और पर्वतमाला का हिस्सा होती है, जिस पर एक ऊंची चोटी स्थित होती है. केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली को अलग करना वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह तर्कहीन है.
"पूर्वी राजस्थान तक रेगिस्तान को आमंत्रण देना"
गहलोत ने एक्स पर लिखा है कि अरावली थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली प्राकृतिक दीवार है। विशेषज्ञों का कहना है कि 10 से 30 मीटर ऊंची छोटी पहाड़ियां भी धूल भरी आंधियों को रोकने में बेहद कारगर होती हैं। इन छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोलने का मतलब दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तक रेगिस्तान को आमंत्रण देना है।
"देश को अपूरणीय नुकसान हो सकता है"
गहलोत ने इसे बड़ी विडंबना बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई अरावली को स्पष्ट रूप से पहचानने और बचाने के लिए शुरू हुई थी, लेकिन केंद्र सरकार की सिफारिश को मानने से अरावली का करीब 90 % हिस्सा तकनीकी रूप से गायब हो गया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सीधे तौर पर विनाश को निमंत्रण देने वाला है और इससे देश को अपूरणीय नुकसान हो सकता है।
संवाददाता :- खुशी ढ़िमोले

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