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"तू क्यों खुद को कमजोर समझती है"



"तू क्यों खुद को कमजोर समझती है"


तू क्यों खुद को कमजोर समझती है,

तू भी तो जीवन देने वाली धरती है..…...


जरूरी नहीं कि...

हर वक्त कोई पुरुष तेरी सुरक्षा में तैनात रहे

है तुझ में अदम्य साहस.....

अपने स्वाभिमान की रक्षा तू खुद कर सकती है...


तू क्यों खुद को कमजोर समझती है

तू भी तो जीवन देने वाली धरती है .


जरूरी नहीं कि....

हर वक्त कोई साथी तेरे साथ रहे...

कुछ रास्ते अकेले ही तय करने पड़ते है

 फिर क्यों तू...

 हर रास्ते पर अकेले चलने से डरती है..

 फिर क्यों खुद को कमजोर समझती है...

     

 कोख में तू ने राम को पाला...

 पाला तू ने ही कृष्ण को .....

 फिर क्यों तू...

 रावण,  कंस के अत्याचारों से डरती है... 

 फिर क्यों तू...

 अपने आत्मसम्मान के लिए

 आवाज बुलंद नहीं करती है?


 तू क्यों खुद को कमजोर समझती है?

 तू भी तो जीवन देने वाली धरती है....


लेखिका -

ज्योति रज्जन विश्वकर्मा ,

दमोह(M.P.)

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