जमीनी हकीकत विकास की
उड़ जाती है कागजी कार्रवाइयां,
लुट जाते हैं सरकारी खजाने,
जमीनी हकीकत जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
किसानों का हाल जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
वक्त चलता रहा विकास बड़ते रहे,
खजाना लुटता रहा पैसे बंटते रहे,
सुना है सरकार ने भी काफी कर्ज़ ले रखा है,
सरकारी खर्च का जायजा लेने कोई सरकार आयेगी क्या ?
जमीनी हकीकत जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
हां वो कुछ माहौल होता है चुनाव का,
तब पता चलता है ये विधायक थे हमारे,
विलों में छुपे छछूंदर गांव गांव में घूमने लगे,
तब पता चला ये है असहाय के सहारे,
वास्तविकता में मददगार कोई सरकार आयेगी क्या ?
किसानों का भी हाल जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
किसानों के मुद्दों पर गर्मा जातीं हैं राजनीतियां,
मुद्दे दबाकर फिर सेंकी जाती है राजनैतिक रोटियां,
जमीनी हकीकत जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
किसानों का भी हाल जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
सुना है मुश्किलों में कभी-कभी फरिश्ते मिल जाते हैं,
माहौल हो चुनाव का तो रिश्ते मिल जाते,
ना जाने कहां से निकल कर आते हैं किसानों के भाई, समर्थक, गरीबों के मसीहा,
वास्तविकता में मददगार कोई सरकार आयेगी क्या ?
किसानों का भी हाल जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
लौट आते हैं निराश होकर फरियादी जिले के सरकारी दफ्तर से,
क्या यही न्याय है देश का उच्च स्तर पे ?
एक जमाना था जब फरियादी राजा से मिल कर न्याय मांगता था,
अब फरियादी से राज्य सरकार भी कभी मिल पायेगी क्या ?
जमीनी हकीकत जानने कोई सरकार आयेगी क्या ?
लेखक:- राजधर अठया
दमोह ,मध्यप्रदेश
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