बालगोपाल श्री कृष्ण की लीलाएँ 


बादल बरसें बिजली चमके, अंधेरा था घनघोर।

श्री कृष्ण जन्म के हर्षोल्लास में, नदियां भरतीं हिलोर।


कृष्ण‌ जन्मे कारावास में, गोकुल में जन्मे बड़े भाई।

दिव्य प्रकाश में चमके कोठरी, जब जन्मे कृष्ण कन्हाई ।


भादों की आधी रात में, आए सांवरिया सरकार।

बेड़ी खुल गईं हथकड़ियां खुल गईं, सो गए पहरेदार।

सो गए पहरेदार, कृष्ण मथुरा से गोकुल में आए।

मथुरा में जन्मे देवकी नंदन, गोकुल में यशोदा के लाल कहाये।


नंदबाबा के द्वार जैसा आज, दूजा मंदिर कोई नहीं।

जैसा रूप सजा कृष्ण कन्हैया का, उनके जैसा दूजा सुंदर कोई नहीं।


दूर-दूर से आए देवता, साधु संत के भेष में।

अजब सी मस्ती छाई हुई है गोकुल के परिवेश में।


माखन चोर, मुरली मनोहर के रूप में, श्रीहरि गोकुल में आए।

श्रृंखला बनाई सखाओं संग, मटकी तोड़ी, सबको माखन खिलाएं।


मटकी तोड़ कर माखन खिलाना, प्रभु का ये संदेश था।

कोई भूखा ना रहे दीन-दुखी, सबको करना एक था ।


जुल्म मिटाने धरती से, प्रभु ने ये खेल रचाया था।

चाहे नारी हो, कुब्जा, या गरीब हो सबको सम्मान दिलाया था।


लेखक:- 

राजधर अठया

दमोह, मध्यप्रदेश