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गुम हो गया है आनंद...


।। आनंद ।।


आज का अखबार...

आने पर अखबार खोला...

नजर एक विज्ञापन पर गयी...

मैं ने ही दी थी...


गुम हो गया है आनंद...

उसे पता भूलने की आदत है...

रंग जो दिखाई दे...

ऊंचाई जो पसंद आये...

कपड़े सुख वाले हों...

फिर दुख भले ही हो बटनों पर...


किसी को बगैर बताए घर से चला गया है...

ढूंढ कर थक चुका हूं और हार गया हूं...


अब आ जाओ "आनंद"...

कोई तुम पर नाराज़ नहीं होगा...

कोई सख्ती नहीं होगी तुम पर...

सभी तेरी आस में बैठे हैं घर पर...

दरवाजा खोला हुआ है...


ढूंढ कर लानेवाले को ईनाम दिया जाएगा...

सुनते ही हम ने सोचा...

क्यों ना हम...

आनंद को ढूंढ लाए...


और...

क्या आश्चर्य...

आनंद को ढूंढने पर...

आनंद मिल गया...


कहां था आखिर...?

पुराने पुस्तकों के बीच...

मनचाहे यादों में...

अगरबत्ती की खुशबू में...

बिन मौसम बरसात में...


उसी ने मुझे देख...

मेरे नाम से आवाज दी...

मुड़कर देखा तो आनंद था...

मैं ने कहा अरे तुम...

यहीं पर थे...

बेकार में विज्ञापन दी...

उसने कहा...

तुम इंसान सभी पागल होते हैं...


ना जाने तुम बाहर क्यों ढूंढते हो...

जब की मैं...

घर की हर चीज में रहता हूं...

तुम्हारे भीतर...

तुम्हारे मन में रहता हूं...

आनंद...!


लेखक 

अच्युत उमर्जी 

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