गुरु वंदना 


गोविंद से भी ऊंचा होता शिक्षक का स्थान          

हृदय सुमन अर्पित गुरु को 

जो करे शिष्य का उत्थान 

स्वार्थ कभी मन में ना व्यापे 

लोभ कभी छू न पाए 

ईर्ष्या द्वेष पास ना आए 

होता है गुरु का उदात्त चरित्र 

सच्चाई ईमानदारी कर्तव्य निष्ठा जिनके मित्र 

बालकों के कल्पना संसार को 

भर देते हैं जो ज्ञान से 

सुलझाते बालकों की उलझनें 

ज्ञान देते जो ध्यान से 

संतान सरिस शिष्य को मानें 

वात्सल्य की धारा बहाएं

संरक्षक बन जाते शिष्य के 

उन्नति पद पर आगे बढ़ाएं

शिष्य उन्नति हित समर्पित रहते अहर्निश                 

कठिन मेहनत करते नित- नित 

सहते रहते तंज़- तपिश 

सीधा-साधा सा जीते जीवन

अभाव झेलकर भी  रहते प्रसन्न 

शिष्य की समृद्धि में जीते 

अपनी समृद्धि का स्वप्न।

राष्ट्रनिर्माता गुरुजनों को शत शत नमन।

                       

लेखिका 

- कंचन  वर्मा