आज़ादी तो अभी भी बाकी है कहीं न कही
यूँ कहने और सुनने को तो हम स्वतंत्र दिखते हैं, पर क्या स्वतंत्र विचार और खुली सोच रखते हैं? महिलाओं का अकेले बाहर जाना क्यूं मुनासिब नहीं होता, क्यूं किसी अदालत में इंसाफ का कोई तालिब नहीं होता? परायी बहू बेटियों को कहां अपनाया जाता है, दहेज के लिए उनको बली क्यूं चढ़ाया जाता है? आतंक फैला रहे क्यूं देश में आतंकवादी संगठन, क्यूं हो रहा है देश में ज़बरन धर्म परिवर्तन? अभी भी क्यूं हो रहे हैं अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भेदभाव, पड़ रहा है क्यूं देश में सांप्रदायिक हिंसा का प्रभाव? बढ़ते जा रहे हैं क्यूं देश में भ्रष्टाचार और अत्याचार, आखिर कब तक होंगे बच्चे शोषण और दुष्कर्म के शिकार? क्यूं करना पड़ रहा है दलितों को ज़ुल्म का सामना, नहीं रुक रही क्यूं ये घिनौनी और अपराधिक घटना? और अब तो इस कोरोना ने भी दे दिया है दस्तक, है क्या हमें अपनी मर्ज़ी से सांस लेने का हक तक? हम खुद के देश में खुद ही बने हैं गुलाम, क्या यहीं है हमारे आज़ाद भारत का मुकाम? ऐसे तो हमारी आज़ादी को 73 साल हो आये हैं, पर क्या सच में हम "स्वतंत्र भारत" बना पाये हैं? आज़ादी तो अभी भी बाकी है कहीं न कहीं, फिर ये जश्न-ए-आज़ादी है क्या अभी सही?लेखक
आकाश सिंह ,(~ASR.मुसाफ़िर )
जबलपूर ,म. प्र,
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