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भगतसिंह

 

भगतसिंह

पिता किशनसिंह, माँ विद्यावती के थे संतान वो अंग्रेज़ी हुकूमत के आगे चलते सीना तान वो बचपन मे ही बोना चाहा था बन्दूकों की फ़सल ताकि आज़ादी पाने में अंग्रेज़ों से हो देश सफल शपत लिया फ़िर भगतसिंह ने जलते अंगारों पर गूँज उठा था कण-कण तब इंकलाब के नारों पर सुखदेव, राजगुरु के संग करने चले आगाज़ नया कही आज़ादी लेकर रहेंगे, लिखेंगे इतिहास नया मारी गोली सॉण्डर्स को थी बड़े सोच विचारों से ले लिया बदला तीनों ने लाला जी के हत्यारों से फेंकी बम असेम्बली के फ़िर खाली स्थानों पर ताकि आवाज़ सुनाई दे अंग्रेजी बहरी कानों पर भाग सकते थे असेम्बली से पर इसका प्रतिकार किया ख़ुद ही जेलों में जाना तीनों ने स्वीकार किया पता था उनको बाद में इसके फाँसी होने वाली है जंग-ए-आज़ादी में अब क़ुर्बानी होने वाली है गायी जेल मे रंग दे बसंती और भूख हड़ताल किया जेल में रहकर भी अंग्रेज़ों का जीना बेहाल किया माता से बोले भगत कि तुम ना आँसू बहाओगी आज़ादी के हर दीवाने में माँ तुम मुझको पाओगी पीछे ना हटे ये तीनों अपने किए गए हर वादों से डोल गया था ब्रिटिश शासन बस उनके इरादों से फ़िर 23 मार्च सन इक्कतीस की वो काली सुबह आ गयी स्वयं काल की भी रूह थी उस दिन घबरा गयी लटके जब वो फाँसी में खुद रस्सी भी रोयी होगी भारत माता जब अपने तीन बेटों को खोयी होगी हम सब सीखे राष्ट्र प्रेम आज़ादी के ऐसे दीवानों से मिली आज़ादी हमको ऐसे वीरों के बलिदानों से इनकी अमर कहानी हमको बात यही सिखलाती है कि वीरों की कुर्बानी जग में व्यर्थ नहीं कभी जाती है इंक़लाब ज़िंदाबाद


लेखक प्रकाश कुमार धनबाद म. प्र,

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