जबलपुर रेल मंडल के लिए नासूर बन गया अवैध वेंडर्स का गोरखधंधा, अफसरों का नियंत्रण नहीं
खाकी वर्दी की आड़ लेकर रेलवे पुलिस और जीआरपी पूरे जबलपुर रेल मंडल में अवैध कारोबार को डंके की चोंट पर संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। आईजी, डीआईजी और कमांडेंट का कोई नियंत्रण दूर दूर तक नजर नहीं आता है। जबलपुर रेल मंडल के लिए सैकड़ों अवैध वेंडर्स नासूर जैसी गंभीर समस्या बन गये हैं। मजेदार बात यह है कि यह समस्या खाकी वर्दी द्वारा स्वयं रेलवे स्टेशन और रेलगाड़ियों में पैदा की गई है। सरकार से मिलने वाली मोटी पगार से पुलिस वालों का पेट नहीं भरता है इसलिए साइड बिजनेस के नाम पर ऊपरी कमाई करने के लिए अवैध वेंडरों को दौड़ाया जा रहा है। सूत्रों ने बताया कि यह पूरा खेल आरपीएफ और जीआरपी के संरक्षण में खेला जाता है। अवैध वेंडर्स को चलाने वाले आधा दर्जन से अधिक ठेकेदारों से पुलिसिया गठजोड़ सालों पुराना है। हर एक ठेकेदार अकेले सतना आरपीएफ थाना को पचास हजार और जीआरपी थाने को तीस हजार रुपए मासिक नजराना पेश करता है। इसी तरह की उगाही आरपीएफ और जीआरपी द्वारा जबलपुर, कटनी और मानिकपुर स्टेशन पर बराबर की जाती है। सोशल मीडिया सहित कई समाचार पत्रों में सतना आरपीएफ और जीआरपी का अवैध वेंडर को लेकर उमड़ने वाले प्रेम पर आधारित खबरें चलने के बाद भी बेशर्म बनकर पुलिस धंधा करवा रही है। अब जब कानून के रखवालों ने ही धज्जियां उडवाने की कसम खा रखी है तो फिर अवैध वेंडर को रेलगाड़ियों और स्टेशन में घुसने से कौन रोक सकता है। रेलवे पुलिस सतना की तरह दूसरे प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर भी आरपीएफ थाना या चौकी का एक जिम्मेदार सिपाही महिला और पुरुष अवैध वेंडर्स से मासिक वसूली का काम बराबर पूरा करता है। मुसाफिरों के साथ सरेआम अवैध वसूली को सामग्री के बदले अवैध वेंडर अंजाम देते हैं, इसके बाद भी कहीं कोई एक्शन नहीं लिया जाता है। बताया जाता है कि अवैध वेंडर की भीड़ में सबसे ज्यादा संख्या मानिकपुर क्षेत्र में रहने वाले पुरुष और महिलाओं की रहती है। जबलपुर, कटनी, सतना और मानिकपुर के ठेकेदार आरपीएफ और जीआरपी के परस्पर सहयोग के सहारे अवैध वेंडर्स को दौड़ाने का काम करते हैं।
संवाददाता : आशीष सोनी
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