अपने साहस और कुर्बानी से इतिहास को नया मोड़ दिया। यह कहानी है रानी दुर्गावती की
16वीं शताब्दी की बात है, जब भारत के कई हिस्सों में राजपूत और मुगलों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था। उसी दौर में रानी दुर्गावती गोंडवाना की गद्दी पर बैठीं। रानी का जन्म 1524 में महोबा (मध्य प्रदेश) में चंदेल राजवंश में हुआ। वह बचपन से ही तलवारबाजी, घुड़सवारी और तीरंदाजी में पारंगत थीं। इनकी शादी गोंड राजा दलपत शाह से हुई, और यहीं से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया। जब उनके पति का देहांत हुआ, तो दुर्गावती ने न केवल अपने बेटे को गद्दी पर बैठाया, बल्कि खुद राज्य की बागडोर संभाली। लेकिन उनकी सबसे बड़ी परीक्षा तब आई, जब मुगल सम्राट अकबर ने उनके राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की। इतिहास गवाह है कि रानी दुर्गावती ने कभी झुकने या समर्पण करने का नाम नहीं लिया। वह अपने वीर सैनिकों के साथ मैदान में उतरीं, तलवार और धनुष-बाण लेकर दुश्मनों का सामना किया। उनका सबसे बड़ा युद्ध 1564 में हुआ, जब मुगल सेना के खिलाफ लड़ते हुए उन्होंने अपनी जान तक कुर्बान कर दी। पराजय सामने देखकर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः अपने सम्मान की रक्षा के लिए आत्मबलिदान कर लिया। यह सिर्फ एक युद्ध नहीं था, यह एक महिला की अदम्य शक्ति और आत्मसम्मान की लड़ाई थी। रानी दुर्गावती की कहानी हमें यह सिखाती है कि साहस और आत्मसम्मान के लिए लड़ाई किसी एक युग या लिंग तक सीमित नहीं है। उनकी वीरता आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा है।
वीडियो लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=yPUnfl7J3-k
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