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बजट पेश करने का समय बदल कर कैसे भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य को दिखाई थी उसकी औकात

 बजट पेश करने का समय बदल कर कैसे भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य को दिखाई थी उसकी औकात

बजट किसी भी देश की आर्थिक दिशा और विकास की गति का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है. यह न केवल सरकार के वित्तीय दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि यह भी निर्धारित करता है कि किसी देश के विभिन्न क्षेत्रों में कितनी प्राथमिकता दी जाएगी. बजट को एक प्रकार से एक आर्थिक खाका माना जा सकता है, जो सरकार के द्वारा निर्धारित योजनाओं और नीतियों के अनुसार आर्थिक संसाधनों का वितरण करता है. हर देश का बजट न केवल उस वर्ष की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि भविष्य के विकास और समृद्धि के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करता है. 

2001 में हुआ था ऐतिहासिक परिवर्तन 

भारत में बजट के साथ जुड़ी कई ऐतिहासिक परंपराएं रही हैं, लेकिन इनमें से एक महत्वपूर्ण बदलाव 2001 में हुआ था, जो आज भी चर्चा का विषय है. इस परिवर्तन ने न केवल भारत के बजट पेश करने की प्रक्रिया को नया आकार दिया, बल्कि यह बदलाव भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बन गया. भारत में बजट पेश करने की एक पुरानी परंपरा रही है, जो लगभग 1927 से लेकर 2000 तक जारी रही. इस परंपरा के अनुसार, भारत का बजट हर साल शाम के 5 बजे पेश किया जाता था. यह समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि उस समय लंदन में सुबह के 11.30 बज रहे होते थे. 

ब्रिटेन के हाउस में सुनते थे सांसद भारतीय बजट भाषण

इस समय ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमन्स में बैठे सांसद भारतीय बजट भाषण को सुनते थे. इसका कारण यह था कि भारत के कारोबारी हित ब्रिटेन के लंदन स्टॉक एक्सचेंज से जुड़े होते थे, और भारतीय बजट का असर सीधे तौर पर उन पर पड़ता था.  यह परंपरा भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी जारी रही, लेकिन 50 वर्षों के बाद इसे बदलने का निर्णय लिया गया. 2001 में, तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भारतीय समयानुसार बजट पेश करने का निर्णय लिया. उन्होंने बजट दिन में पेश करने का फैसला लिया, जो भारत की स्थानीय परंपराओं और जरूरतों के अनुसार था. 

आर्थिक और राजनीतिक संप्रभुता बढ़ी 

यह बदलाव सिर्फ एक समय परिवर्तन का मामला नहीं था, बल्कि यह भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. भारत के वित्तीय निर्णय अब पूरी तरह से देश के संदर्भ में लिए जा रहे थे, न कि ब्रिटेन या किसी अन्य विदेशी शक्ति के हिसाब से. इस कदम ने यह संदेश दिया कि अब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जो अपने निर्णयों में आत्मनिर्भर है और किसी भी विदेशी प्रभाव से मुक्त है. 2001 में यह बदलाव केवल एक समय परिवर्तन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह भारत की बढ़ती ताकत और संप्रभुता का प्रतीक था. यह कदम दर्शाता है कि भारत ने अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त किया है और अब वह पूरी दुनिया में एक मजबूत शक्ति के रूप में खड़ा है. 

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