अभ्यारण्य क्षेत्र में थम नही रहा अवैध उत्खनन कुम्भ निद्रा में अभ्यारण्य अमला, ठेकेदार पर मेहरबान
जिले के संजय नेशनल पार्क अभ्यारण्य स्थित बगदरा क्षेत्र में अवैध उत्खनन का कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा है, जबकि यह क्षेत्र पूरी तरह से संरक्षित अभ्यारण्य की श्रेणी में आता है। प्रदेशभर में यह इलाका काले मृगों के सुरक्षित आवास के रूप में जाना जाता है, लेकिन वर्तमान हालात बेहद चिंताजनक बनते जा रहे हैं।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार माची एवं जगमार बीट क्षेत्र में दिन-रात उत्खनन जोरों पर चल रहा है, भारी मशीनें और ट्रैक्टर खुलेआम अवैध खनिज परिवहन में लगे हुए हैं। हैरानी की बात यह है कि जहाँ उत्खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है, वहीं खनन माफिया बेखौफ होकर वन अमला के आँखों के सामने नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहा है। वन विभाग, अमला इस पूरे मामले में या तो सोता हुआ दिख रहा है या जानबूझकर आँखें मूँदे हुए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे माफियाओं का हौसला और बढ़ता जा रहा है। आलम यह है कि एक नही दोनों बीट में कई जगह लम्बे-चौड़े स्थानों पर मुरूम का उत्खनन कर निर्माणाधीन सड़को में खपाया गया है और यह सब मुख्य सड़को के आसपास ही उत्खनन हुआ है। इसके बावजूद अभ्यारण्य अमले की नजरें इस उत्खनन पर नही पड़ी। चर्चाएं यहां तक है कि ठेकेदार एवं वन अमले के सांठगांठ में हो रहा है। इसीलिए वन अमला अनजान बना हुआ है। इधर बकिया-बरगवां गांव के इस पूरे मामले को लेकर स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों में भारी नाराजगी है। लोगों का कहना है कि अगर समय रहते इस पर रोक नहीं लगी, तो आने वाली पीढ़ियों को यह अभ्यारण्य सिर्फ कहानी बनकर रह जाएगा। प्रशासन से मांग की जा रही है कि अवैध उत्खनन में लिप्त माफियाओं के साथ-साथ लापरवाह अधिकारियों पर भी कठोर कार्रवाई हो। साथ ही संजय नेशनल पार्क जैसे संवेदनशील और संरक्षित क्षेत्र में हो रहा अवैध उत्खनन केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि प्रदेश की प्राकृतिक धरोहर के साथ खुला खिलवाड़ है। अब देखना यह है कि प्रशासन जागता है या खामोशी के साथ काले मृगों और जंगलों का विनाश देखता रहता है।
पर्यावरण को भारी नुकसान, ठेकेदार को छूट
अवैध उत्खनन का सबसे गंभीर असर पर्यावरण पर साफ दिखाई दे रहा है। खनन की आड़ में घने जंगलों के पेड़ बेरहमी से काटे जा रहे हैं। इससे न सिर्फ जैवविविधता को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि काले मृग, हिरण सहित अन्य वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट होता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यही स्थिति रही तो आने वाले वर्षों में यह अभ्यारण्य सिर्फ कागजों में ही रह जाएगा। वहीं अब इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि अभ्यारण्य क्षेत्र में अवैध उत्खनन के लिए छूट किसने दी है। खनन कारोबारी एवं वन अमले का क्या संबंध है? इस बात को लेकर अब वन अमला काफी घिरता नजर आ रहा है। बकिया-बरगवां गांव के कुछ ग्रामीण बताते हैं कि अवैध उत्खनन चल रहा है। इसे देखने के लिए वन अमला आता है, लेकिन अवैध उत्खनन पर ध्यान नही देता है।
वन अमले की दोहरी कार्यप्रणाली
कुछ पंचायतो के सरपंचों ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि जहाँ से अवैध रूप से पैसा पहुँचता है, वहाँ पर किसी तरह की रोक टोक नहीं होती। लेकिन जब ग्राम पंचायतें विकास कार्यों के लिए सड़क, भवन या अन्य कार्य कराना चाहती है, तो उन्हें विभिन्न विभागों की आपत्तियों का सामना करना पड़ता है और वन अमले की इस बात पर नजर रहती है कि कौन से पंचायत में नये कार्य मंजूर हुये हैं और उस हिसाब से वे भाग-दौड़ कर कथित वनकर्मी पंचायत पर दबाव बनाने लगते हैं। इधर वन विभाग के कुछ कर्मचारियों पर भी आरोप हैं कि सही जगह चढ़ावा न मिलने पर वे नियमों की दुहाई देने लगते हैं, जबकि लक्ष्मी पुत्रों को अवैध उत्खनन करने वालों को खुली छूट दे दी जाती है। यह दोहरी कार्यप्रणाली संजय नेशनल पार्क अभ्यारण्य बगदरा के अमले की भूमिका पर गहरे सवाल खड़े करती है।
संवाददाता :- आशीष सोनी

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