क़र्ज़ देकर खेल खेल में हो गए रफू चक्कर
4 सितम्बर 1952 को जन्में ऋषि कपूर 67 वर्ष की
आयु में कपूर खानदान की विरासत में चार चाँद लगाकर अपने दर्शकों को अकेला छोड़ कर
चले गए, हिंदी
सिनेमा की बात हो तो सबसे पहला उल्लेख कपूर खानदान का होता है कि किस प्रकार एक
परिवार ने कलाकरों की कतार लगा दी और निरंतर दशकों तक भारतीय दर्शकों को मनोरंजन
परोसा, पृथ्वीराज
कपूर, राज कपूर, शम्मी कपूर
और शशि कपूर की परम्परा को आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व ऋषि कपूर पर आया जिन्होंने
अपनी अदाकरी से दर्शकों का मनोरंजन 50 वर्षों से अधिक समय तक किया. बेहद कम ही
लोगो को यह इल्म होगा कि रूपहले पर्दे पर ऋषि जी ने सबसे पहली दस्तक राज कपूर
अभिनीत “श्री 420” से दी थी, “मेरा नाम
जोकर” से अपने सफ़र
की शुरुआत करने वाले ऋषि जी को इस फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार से नवाज़ा गया
था, मुख्य
अभिनेता के रूप में ऋषि जी की पहली फ़िल्म “बॉबी” थी, अपनी पहली फ़िल्म में फ़िल्म फ़ेयर (मुख्य
अभिनेता) पुरुस्कार जीतने वाले ऋषि कपूर पहले सख्स थे. 1973 में बॉबी
फ़िल्म का जादू ऐसा चला की फ़िल्म के गीत आज भी गुनगुनाए जाते है, ऋषि जी के
फ़िल्मी सफ़र का उल्लेख करें और उनके सुप्रसिद्ध गीतों का उल्लेख ना हो ऐसा तो संभव
नहीं है, बॉबी के
सुपर-हिट गीत “मैं शायर तो
नहीं”, “झूठ बोले
कौआ काटे” और ”हम तुम एक
कमरे में बंद हो” को कौन भूल
सकता है, यह तो ऋषि
जी के सफ़र का महज आग़ाज मात्र था उनके फ़िल्मी सफ़र में चर्चित सिनेमाओं का जिक्र
करें तो 1975 की फ़िल्म “खेल खेल में” एवं “रफू चक्कर”, वर्ष 1976 में “कभी-कभी” और “लैला मजनू” तथा 1977 में “हम किसी से
कम नहीं” एवं “अमर अकबर
एंथोनी” के साथ युवा
दर्शकों के मध्य ऋषि जी लोकप्रियता के शिखर पर थे, इस दौर में उनके गीत “खुल्लम
खुल्ला प्यार करेंगे”, “एक मैं और
एक तू”, “तेरे चेहरे
से नज़र नहीं हटती”, “कोई पत्थर
से ना मारे”, “बचना ए
हसीनो”, “पर्दा है
पर्दा”, “शिर्डी वाले
साईं बाबा” जैसे गीत
काफ़ी लोकप्रिय हुए. वर्ष 1979 में
प्रदर्शित “सरगम” में जहाँ
उनकी अदाकारी की सराहना हुई तो वर्ष 1980 की फ़िल्म “क़र्ज़” से वो
डांसिंग रॉक-स्टार के रूप में स्थापित हो गए थे. जिसके गीत “ओम शांति ओम” और “दर्दे दिल
दर्दे जिगर” गीत आज भी
हर दिल अज़ीज है. इस दौर में ऋषि जी ने “आप के दीवाने”, “नसीब”, “ये वादा रहा”, “जमाने को
दिखाना है” जैसे
बहुचर्चित फ़िल्में की लेकिन उनकी अदाकारी का एक अनूठा रूप 1982 में विधवा
पुनर्विवाह पर आधारित फ़िल्म “प्रेम रोग” में देखने को मिला. ऋषि जी का फ़िल्मी सफ़र
“कुली”, “सागर”, “नगीना”, “चांदनी”, “हिना”, “बोल राधा
बोल”, “दीवाना”, और “दामिनी” जैसी सफ़ल
फिल्मों के साथ बढ़ता चला गया...
जवानी के ढलते पड़ाव पर जब आलोचकों का
मानना था कि ऋषि जी का फ़िल्मी सफ़र समाप्ति की ओर है उस कठिन दौर में “हम तुम” फ़िल्म से
उन्होंने शानदार वापसी कर सभी आलोचकों को नि:शब्द कर दिया था, वर्ष 2006 में “फ़ना” एवं 2007 में “नमस्ते लंदन” में एक बेटी
के पिता की भूमिका को ऋषि जी ने काबिल-ए-तारीफ़ अंदाज में दर्शकों के समक्ष रखा.
ऋषि जी अपनी दूसरी पारी में भी काफ़ी सक्रिय रहे. “लक बाय चांस”, “देल्ही 6”, “लव आज कल”, “स्टूडेंट ऑफ़
द ईयर”, “हाउसफुल 2”, “चश्मे
बद्दूर”, “दो दूनी चार“ जैसी
भिन्न-भिन्न विषय पर आधारित फिल्मों में ऋषि जी ने अपनी अदाकारी दिखाई, किन्तु अभी
भी उनके अभिनय का नकारात्मक पक्ष आना शेष था जो कि देखने को मिला “अग्निपथ”, “औरंगजेब” और “डी-डे” जैसी
फिल्मों के माध्यम से, लेकिन ऋषि
जी ने “कपूर एंड
संस” और “मुल्क” से जो अपने
अभिनय के अनूठे पक्ष को सामने रखा जो कि दर्शकों के लिए अकल्पनीय कहें तो
अतिशियोक्ति नहीं होगी. ऋषि जी की अंतिम प्रदर्शित फ़िल्म "शर्माजी नमकीन" थी जिसे उनके देहांत के उपरांत प्रदर्शित किया गया था
. किसको पता होगा कि दर्शकों को अपने
अभिनय से हँसाने और गुदगुदाने वाले ऋषि कपूर जिनके घर के बाहर प्रशंसकों का ताँता
लगा होता था वो दर्शक आज भी उनके अभिनय के लिए ललायित है और उक्त दर्शकों के
लिए उनकी फ़िल्म लव आज कल का संवाद “जाने से पहले, एक आखरी बार
मिलना क्यों जरुरी होता है” सार्थक
प्रतीत होता है, सागर जैसी
गहरी ऋषि जी की अदाकारी और उनके सुप्रसिद्ध गीतों की यादें हमेशा नॉक आउट रहेगी...
लेख़क : अभिनव
मुखुटी (राजा)
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