मुंशी प्रेमचंद ( कलम का सिपाही ) देश के प्रमुख साहित्यकार
मुंशी प्रेमचंद के साहित्य जगत में आने के बाद लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि कलम की ताकत तलवार से भी ज्यादा होती है। मुंशी प्रेमचंद का साहित्य सदैव ही समाज का वास्तविक दर्पण बनकर साहित्य जगत को रोशन करता रहेगा।
मुंशी जी हमेशा कहते थे- लिखते वह लोग हैं जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया वह क्या लिखेंगे और क्या कलम की ताकत को जानेंगे।
मुंशी प्रेमचंद जी ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद जी ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था,उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद जी के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। उनके पुत्र हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतराय हैं जिन्होंने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया था।
मुंशीजी के कलम की ताकत को हम इस तरह जान सकते हैं कि उनका उपन्यास सोज़े वतन ने लोगों के मन मे देश भक्ति की भावना जगा दी और इसे पढ़ कर लोगो के अंदर इतना जुनून भर गया, कि ब्रिटिश सरकार ने इसकी 500 कॉपी जलाने के आदेश दे दिये और इस पर रोक लगा दी। कुछ लोग यह भी कहते हैं, कि ब्रिटिश सरकार इनका हाथ भी कटवाने वाली थी, लेकिन यह संभव ना हो सका।
जब भी हिन्दी साहित्य की बात आती है, तो इनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। आज भी मुंशी प्रेमचंद जी के उपन्यास बहुत सी किताबों में आते हैं। हिंदी कहानी को नयी दिशा देने वाले मुंशी जी की कलम में कितनी ताकत है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। इनकी कथाओं में मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी भी पात्र हैं। गांव लमही जो उनकी जन्म भूमि के साथ कर्म भूमि भी रही है।
वैश्विक युग में प्रेमचंद का कथा साहित्य भारतीय समाज का दस्तावेज है। राष्ट्रीय आन्दोलन में उनका बड़ा योगदान है। आन्दोलन में वे दो लडाई लड़ रहे थे एक मानवी चेतना का और दूसरा आजादी की। हम उन्हें हिंदी साहित्य का गांधी कहें तो कम नहीं होगा। उन्होंने छोटे-छोटे कहानीयों में देश की जरूरतों को लिखा है।
लेखिका
-शारदा कनोरिया
(पुणे, महाराष्ट्र )
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