पचास साल से बेघर होकर भटकने को मजबूर 25 परिवार, प्रूफ रेंज बनाने के लिए विस्थापित किए जाने के बाद से अब तक नहीं मिली छत
जंगल में आकर बस गए आदिवासी परिवारों ने मंगलवार को होशंगाबाद जिला पंचायत की सदस्य सीमा कासदे और अपने नेता दुर्गेश धुर्वे के साथ प्रदर्शन किया। हमारा गांव संगठन के बैनर तले एकजुट हुए आदिवासियों ने बैतूल कलेक्टर को ज्ञापन सौंप कर कहा है कि सन 1969-70 में प्रूफ रेंज (CPE) विस्थापन के नाम पर ग्राम सिरघाट रैयत विकास खंड शाहपुर जिला बैतूल के गरीब आदिवासियों को जबरन खदेड़ कर भगा दिया गया। तब से लेकर आज तक ग्राम सिरघाट रैयत के गरीब आदिवासी इधर-उधर खाना बदोशों की तरह बिना बिजली, बिना पानी, बिना मकान के बैतूल के उत्तर वन मंडल के प्रोटेक्टिव फॉरेस्ट जंगल इलाके में तंबू बनाकर रहने को मजबूर हैं।
मुझे अच्छे से याद है। मैं उस समय करीब 10 साल का था। मिलिट्री वाले गांव में आए थे। उन्होंने हम सबको घरों से निकाल दिया था। हमारा सामना घर से बाहर कर दिया गया। घरों में रखी मिट्टी से बनी कोठियों में हम अनाज रखा करते थे। उसे डंडे मारकर फोड़ दिया गया। कपड़ों में हमारा सामान बंधवाकर हमें बैल गाड़ियों से बैठाकर गांव से बाहर कर दिया गया था। पूरा गांव पास के जंगल में रहने लगा था। हम लोग करीब 15 दिन वहीं जंगल में झाड़ पेड़ के नीचे रहे। उसके बाद अपने अपने रिश्तेदारों के पास चले गए। उस समय वहां हमारे करीब 25 परिवार थे।
सिरघाट के 70 वर्षीय सोमा आज भी वह दिन याद करके सिहर उठते हैं। उनके साथ बैठे चतुरसिंह भी उस समय बच्चे ही थे। जब प्रूफ रेंज बनाने के लिए उनके गांव को खाली करा दिया गया था। बैतूल के उत्तर वन मंडल के प्रोटेक्टिव फॉरेस्ट इलाके में झोपड़ी बनाकर पिछले 3 महीने से रह रहे सोमा और उनके जैसे दर्जनों परिवार यही कहानी बताते हैं।
उनका यही आरोप है कि प्रूफ रेंज बनाने के लिए उनका गांव, घर तो खाली करवा लिया गया। लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं दिया गया। वे पिछले करीब 50 साल से दर-दर की ठोकर खाते घूम रहे हैं। उस समय उन्होंने रिश्तेदारों के घरों पर अपना ठौर ठिकाना बनाया था। लेकिन वे भी अब उन्हें बर्दाश्त नहीं कर रहे।
बैतूल आकर किया प्रदर्शन
संवाददाता : विशाल कुमार धुर्वे
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