50 लाख लोगों ने 4 से ज्यादा माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से लिया लोन
समाज का सबसे वंचित वर्ग कर्ज के मकड़जाल में फंसता जा रहा है. ऐसे लोगों के लिए माइक्रो फाइनेंस कंपनियां कर्ज हासिल करने का सबसे बड़ा जरिया है. लेकिन हालत अब ये हो चुकी है कि खुद माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे 50 लाख के करीब लोग हैं जिन्होंने चार या उससे ज्यादा माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से कर्ज ले लिया है जिसे अब वे चुका नहीं पा रहे हैं. इसके चलते माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का ये कर्ज डूबने के कगार पर जा पहुंचा है. क्रेडिट ब्यूरो क्रिफ हाई मार्क (CRIF HIGH MARK) के लेटेस्ट रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है.
कभी भी फूट सकता है Bad Loan का गुब्बारा
CRIF HIGH MARK की रिपोर्ट का सार यही है कि भारत में माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन संकट में हैं और उनके बैड लोन का गुब्बारा कभी भी फूट सकता है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2024 तक 50 लाख लोगों ने चार या उससे अधिक माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन से कर्ज ले रखे थे. उनके ऊपर इतना अधिक लोन था कि वे चुकाने की स्थिति में नहीं थे. इस कारण वे डिफॉल्टर हो चुके हैं या होने वाले हैं और इसके साथ ही पूरी माइक्रो फाइनेंस सेक्टर को ही संकट में डाल दिया है. ये माइक्रोफाइनेंस इंडस्ट्रीज के सबसे अधिक ज्यादा कस्टमर्स वंचित सेगमेंट से आते हैं. कुल साढ़े आठ करोड़ लोगों ने माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस से कर्ज ले रखा है. इनमें से 50 लाख लोग यानी कुल के छह फीसदी हैं. इतने अधिक लोगों के डिफॉल्टर होने के खतरे ने फाइनेंशियल इकोसिस्टम को सदमे में डाल रखा है. क्योंकि, सबकुछ एक चेन के तहत है. अगर माइक्रोफाइनेंस कंपनियां डूबती हैं तो उन्होंने जिनसे लोन ले रखा है उनपर भी कोई कम असर नहीं पड़ेगा.
18 महीने के हाई पर है एनपीए ग्रोथ
चार या उससे अधिक जगह से लोन लेने वालों का आंकड़ा भले ही 50 लाख तक है, लेकिन उसे अगर तीन या उससे अधिक जगह से लोन लेने वालों के स्तर पर ले जाएं तो यह संख्या एक करोड़ 10 लाख पर है. जो 85 मिलियन यानी साढ़े आठ करोड़ के माइक्रोफाइनेंस बेस का 13 फीसदी है. इनमें से भी अधिकतर डिफॉल्टर होने की स्थिति में हैं. इस कारण माइक्रोफाइनेंस का एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट पिछले 18 महीने के हाई पर सितंबर अंत में था. इसमें 11.6 फीसदी का इजाफा हुआ है.
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