सरकार की मंशा पर फिरा पानी पूर्व डीपीओ के कामकाज की जांच कराने उठने लगी मांग, विपक्षी दलों के नेताओं ने आईसीडीएस को लिया निशाने पर
वन स्टाफ सेंटर के अंदर एक आदिवासी बालिका के द्वारा फांसी लगाकर आत्महत्या किये जाने के बाद अधिकारियों के कार्यप्रणाली की पोल खुल गई। वही प्रदेश एवं केन्द्र सरकार की मंशा पर आईसीडीएस के नुमाईंदों ने पानी फेर दिया है।
दरअसल वन स्टाफ सेंटर बैढ़न पिछले वर्ष अगस्त महीने से भगवान भरोसे चल रहा है। 8 अगस्त को एनजीओ का अनुबंध समाप्त होने के बाद तत्कालीन आईसीडीएस के डीपीओ राजेश राम गुप्ता ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था नही किया, बल्कि सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया। कई महीनों तक प्रशासक के जिम्मे छोड़ दिया था। जबकि प्रशासक वन स्टाफ सेंटर के द्वारा डीपीओ के पत्राचार, स्टाफ मुहैया कराये जाने की मांग की जा रही है। इसके बावजूद तत्कालीन डीपीओ राजेश राम गुप्ता ने कोई व्यवस्था नही किया। नाम मात्र के लिए उसमें भी कलेक्टर के हस्तक्षेप पर एक केयर टेकर किसी तरह रख तो लिया, जबकि यहां पर 11 पद स्वीकृत हैं। उसमें काउंसलर के पद भी स्वीकृत हैं। वही सुरक्षा कर्मी व केस वर्कर के तीन-तीन पद मंजूर हैं और वर्तमान में केवल एक-एक ही पद की पूर्ति की गई है। उसमें भी एनजीओ कार्यरत नही है। आरोप लग रहा है कि यदि केश वर्कर एवं काउंसलर के साथ-साथ पर्याप्त सुरक्षा कर्मी होते तो आदिवासी किशोरी आत्महत्या न करती। कहीं न कहीं स्टाफ की कमी से आदिवासी बालिका ने दुस्साहस भरा कदम उठाकर आईसीडीएस के डीपीओ के कार्यप्रणाली का पोल खोल दी। वही यह भी आरोप लग रहा है कि पूर्व में पदस्थ डीपीओ अपने कार्यकाल में वन स्टाफ सेंटर को अस्त-व्यस्त कर दिया था। यहां तक कि निविदा आमंत्रित के बाद राजनीति भी खूब होने लगी और उस दौरान के तत्कालीन डीपीओ कथित नेताओं के सुर में सुर मिला रहे थे। चर्चा यहां तक है कि एनजीओ का चयन न होने के पीछे अपर कलेक्टर को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। फिलहाल यही चर्चा है कि यदि वन स्टाफ सेंटर राजनीति का अखाड़ा न बनता तो शायद बालिका सुसाईड न करती। आज जो आईसीडीएस विभाग की किरकिरी हो रही है, उससे बचाया जा सकता था। कहीं न कहीं पूर्व के डीपीओ की मनमानी एवं वर्तमान डीपीओ तथा अपर कलेक्टर की उदासीनता व राजनैतिक दखलंदाजी वन स्टाफ सेंटर के लिए भारी पड़ गया।
संवाददाता :- आशीष सोनी
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