कमलनाथ के सामने वो पांच चुनौतियां, जिनसे पार पाए बिना नहीं मिलेगी सत्ता की चाबी

अब यह तय हो चुका है कि कांग्रेस मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए एक बार फिर से कमलनाथ के चेहरे को आगे रखकर किस्मत आजमाएगी. पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी साफ कर चुके हैं कि कमलनाथ के चेहरे पर ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. ऐसे में इस बात को समझना जरूरी हो गया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए कमलनाथ कितने जरूरी हैं और उनके नेतृत्व में उतरने से पार्टी को क्या नफा-नुकसान हो सकता है

यहां बताते चले कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब केवल 6 महीने रह गए है. प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस चुनावी वार रूम के सेटअप के साथ स्ट्रेटेजिक एक्सपर्ट की सेवाएं लेने लगे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार रहे सुनील कानुगोलू पर अब कर्नाटक और तेलंगाना के साथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. सुनील राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के भी मुख्य सूत्रधार थे. इन दिनों कर्नाटक में कांग्रेस के लिए सुनील का 40 फीसदी PayCM कैंपेन जमकर हिट हो रहा है. वह अपने वन लाइनर कैंपेन के कारण राजनीतिक दलों में खूब चर्चा में रहते हैं. कर्नाटक चुनाव अब खत्म होने को है, इसलिए माना जा रहा है कि जल्द ही सुनील मध्य प्रदेश में अपना कैंप ऑफिस बना लेंगे.

सबसे पहले जान लेते हैं कि कांग्रेस के बहुप्रचारित भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने मध्य प्रदेश में किस तरह की चुनौतियां हैं और उन से पार पाने के लिए सुनील कानुगोलू को किस तरह की स्ट्रेटजी तैयार करनी होगी. आज हम यहां उन पांच चुनौतियों की बात करेंगे, जिससे कमलनाथ को पार पाना है.

1.   हालांकि, मध्य प्रदेश में चुनावी राजनीति में जातिवाद का उतना असर नहीं है, लेकिन फिर भी राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कमलनाथ के सामने चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं. कमलनाथ सवर्ण वर्ग से आते हैं. मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. अगर चुनाव में जातिवाद का कार्ड चला तो ओबीसी वर्ग कांग्रेस के कमलनाथ को मुश्किल में डाल सकता है. इसकी काट के लिए कमलनाथ ने भी स्टैंड ले लिया है. वे अक्सर अपनी रैलियों में कहते हैं कि उन्होंने ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिया था जिसे शिवराज सरकार ने कानूनी दांवपेच में उलझा दिया है.

 

2. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में असंतोष की बात भी सामने आती रहती है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और विंध्य क्षेत्र के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल कई बार कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं. हालांकि, बाद में दोनों ने सफाई देते हुए यह मान लिया कि कांग्रेस अगला चुनाव कमलनाथ के चेहरे पर ही लड़ने जा रही है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यह असंतोष अभी भले ही दबा हुआ है लेकिन टिकट वितरण के समय फिर सामने आ सकता है. कमलनाथ को कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी के सभी नेताओं को साधे रखने की चुनौती का सामना आने वाले दिनों में करना पड़ सकता है. इसके साथ ही अपने संकट दिग्विजय सिंह से समन्वय बनाए रखना भी कमलनाथ के लिए एक मुश्किल टास्क साबित हो सकता है.

 

3. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और लोकलुभावन घोषणाओं से पार पाना भी कमलनाथ के लिए बड़ी चुनौती है. मुख्यमंत्री चौहान जिस तरह से पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर अपनी योजनाओं का प्रचार कर रहे हैं, उसे काउंटर करने में कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. जब तक मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव होंगे तब तक शिवराज सिंह चौहान की लगभग एक करोड़ लाडली बहनों के खाते में 6 किस्त यानी 6000 रुपये आ चुके होंगे. इस योजना की काट के लिए कमलनाथ 500 रुपये में सिलेंडर और 1500 रुपये महीना देने वाली 'नारी सम्मान योजना' लेकर आए हैं लेकिन यह तब मिलेगी कांग्रेस की सरकार बन जाएगी. इस वजह से अपनी योजना की खूबियां महिला मतदाताओं को समझाने में कमलनाथ को मुश्किलें आ सकती हैं.

 

4. बीजेपी की डबल इंजन सरकार वाला फार्मूला भी कांग्रेस नेता कमलनाथ को परेशान कर सकता है. बीजेपी ने अभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आगे करके यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस की लड़ाई सीधी 'मोदी मैजिक' से है. हिंदी पट्टी के मतदाताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता अभी भी किसी अन्य नेता के मुकाबले काफी बड़ी है.

 

5. कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में बीजेपी विधानसभा चुनाव के दौरान हिंदुत्व का कार्ड खेल सकती है. हालांकि, कमलनाथ भी कांग्रेस पार्टी की ओर से सॉफ्ट हिंदुत्व का चेहरा है. लेकिन, फिर भी जिस तरह से प्रधानमंत्री कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताने की कला जानते हैं, वह कांग्रेस को चुनाव प्रचार के दौरान परेशान कर सकता है. कमलनाथ को खुद और अपने बाकी नेताओं को हिंदुत्व और प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े मसलों पर बहुत ही खूब फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा. कहा जाता है कि इस मामले पर कांग्रेस अक्सर सेल्फ गोल कर बैठती है.


कमलनाथ के पास 5 दशक का अनुभव
वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र दुबे कहते है कि नौ बार के सांसद और सवा साल के सीएम कमलनाथ के पास सियासत का पांच दशक से भी ज्यादा का अनुभव है.मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य के चुनाव में कांग्रेस के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता कमलनाथ से बेहतर किसी भी नेता के पास नही हैं. चुनावी प्रबंधन से लेकर फाइनेंशियल मैनेजमेंट के मामले में पार्टी के अन्य नेताओं के मुकाबले वह बेहद मजबूत हैं. उन्हें गांधी परिवार का समर्थन भी हासिल है. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी से कमलनाथ की काफी निकटता है. उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी रणनीतिक तौर पर समर्थन मिल रहा है. कमलनाथ कांग्रेस में सबसे सीनियर लीडर हैं और प्रदेश कांग्रेस में फिलहाल ऐसा कोई भी नेता इस योग्य नहीं है कि जिसे आगे कर पार्टी चुनावी मैदान में उतार सके. कमलनाथ की ताकत ही कांग्रेस की कमजोरी भी है.