संवेदना
संवेदना ऐसी अनुभूति है, जो परायों के दर्द को अपना बना देती है। पीड़ा दूसरों को होती है, पर प्राण अपने छटपटाते हैं। संवेदना शब्द की गहराई में दो भाव मिलते हैं। इनमें से एक है सम्यक वेदना, जिसका अर्थ है ठीक-ठीक बोध अथवा सही-सही अनुभूति। इसमें निहित दूसरा भाव है समान वेदना अर्थात दूसरों की वेदना के समतुल्य वेदना। यह ऐसी अवस्था है, जिसमें अपनी अनुभूति गहरी और व्यापक बनती है। दूसरों की पीड़ा अनेक को प्रेरित करती है, कुछ करने को। उनमें सेवा और सहानुभूति के भाव जगाती है। थोड़ा संजीदा मन से विचार करें तो लगेगा कि सहानुभूति जताना तो आसान है, लेकिन दूसरों के दर्द को समझते हुए उसे दूर करने में मदद करना थोड़ा मुश्किल है। यह मुश्किल काम, यह मुश्किल अनुभूति ही तो संवेदना है।एक कहानी द्वारा थोड़ा समझने का प्रयत्न करते हैं।
एक बार की बात है, एक युवक जो काफी समय से बेरोजगार था, हताश निराश एक एकांत स्थल पर उदास सा बैठा था। अचानक एक बच्चा आया और उसके कंधे पर हाथ रख पूछा कैसे हो? तभी उसने देखा उसे बच्चे ने धूप का चश्मा पहना है। युवक बहुत दुखी था थोड़ा चिड़चिड़ा भी था।
बच्चा उसे एक फूल देता है और कहता है इस सुंदर फूल को देखो। युवक चिड़चिड़ाया हुआ था, उसे उस बच्चे पर थोड़ा क्रोध आया। परंतु उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं किया और कहा हां सुंदर है।
बच्चे ने कहा यह सिर्फ देखने में ही सुंदर नहीं इसकी सुगंध भी बहुत अच्छी है। अब उसे सचमुच गुस्सा आया फिर भी उसने कहा तुम ठीक कहते हो यह फूल सुंदर और सुगंधित है। बच्चा कहता है रख लीजिए यह फूल मैं आपके लिए ही लाया हूं। परमात्मा आप पर कृपा करें।
उस युवक को थोड़ी शांति लगती है वह क्षितिज की और ताकने लगता है। तभी उसे कुछ लकड़ी की ठक ठक की आवाज सुनाई देती हैं और पलट कर देखता है तो वह बच्चा एक छड़ी लेकर खड़ा था। अचानक उसके मन में कितनी सारी संवेदनाएं उस बच्चे के प्रति जाग गई अचानक उसे एहसास हुआ कि बच्चा अंधा है। उसकी आंखें नम हो गई, वह सोचने लगा, यह फूल जो उसने पकड़ा था वह वास्तव में दुनिया का सबसे सुंदर और सुगंधित फूल था। वह अपनी संवेदनाओं को दबा नहीं पाया और दौड़ पड़ा बच्चे को गले लगाने।
"संवेदना एक अनुभूति है एक एहसास है"
लेखिका
शारदा कनोरिया
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