सिंधिया गुट के कट्टर समर्थक और पूर्व विधायक मदन कुशवाहा ने की कांग्रेस में वापसी
सिंधिया गुट के कट्टर समर्थक पूर्व विधायक मदन कुशवाहा ने भी कांग्रेस में वापसी कर ली। उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस में शामिल कराया।अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अब तो सब कुछ तय हो चुका है। टिकट भी नहीं मिलना तो फिर मदन कुशवाहा ने बीजेपी और सिंधिया गुट क्यों छोड़ा,क्या मदन कुशवाहा ग्वालियर ग्रामीण सीट पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन्हीं सवालों के जवाब तलाशे ।
से हैं और ग्वालियर ग्रामीण की सीट पर गुर्जर व कुशवाहा जाति के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं, ऐसे में मदन कुशवाहा के कांग्रेस में जाने से कुशवाहा समाज के वोट बंटना तय माना जा रहा है।वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर साहब सिंह गुर्जर को अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में कांग्रेस को गुर्जर समाज और कुशवाहा समाज दोनों का एक साथ वोट मिलना तय है। ऐसे में राजनीतिक पंडित बता रहे हैं कि ग्वालियर ग्रामीण सीट पर मदन कुशवाहा के कांग्रेस में शामिल होने से बीजेपी को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
अब तक कुछ ऐसा रहा है इस सीट पर जीत-हार का गणित
1998 में कांग्रेस के रामवरण गुर्जर को बीजेपी के ध्यानेंद्र सिंह ने चुनाव हराया था। इसके बाद 2003 में भी बीजेपी के ध्यानेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राजेंद्र सिंह को चुनाव में शिकस्त दी थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा के मदन सिंह कुशवाहा ने बीजेपी के ध्यानेंद्र सिंह और कांग्रेस के रामवरण गुर्जर दोनों को मात देकर ये सीट बसपा के नाम कर दी थी।लेकिन 2013 में बसपा के मदन कुशवाहा को बीजेपी के भारत सिंह कुशवाहा ने चुनाव हराया. 2018 के चुनाव के वक्त मदन कुशवाहा ने बसपा छोड़ दी और सिंधिया गुट में आकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था,कांग्रेस के टिकट पर मदन कुशवाहा खड़े हुए लेकिन इस बार भी उनको बीजेपी के भारत सिंह कुशवाहा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था ।जिसके बाद वे सिंधिया गुट के साथ बीजेपी में ही आ गए थे लेकिन बीजेपी ने उनको टिकट देने से इनकार कर दिया।
कुशवाहा और गुर्जर बाहुल्य है ये सीट
ग्वालियर ग्रामीण में कुल 2 लाख 43 हजार की वोटिंग है। जिसमें से कुशवाहा समाज के 45 हजार और गुर्जर समाज के 42 हजार मतदाता हैं। तीसरे नंबर पर जाटव वोटर हैं, जिनकी संख्या 30 हजार है और चौथे नंबर पर बघेल समाज के वोटर हैं, जिनकी संख्या लगभग 20 हजार के आसपास है। अन्य समाज के वोटर भी यहां बड़ी संख्या में हैं। कुल मिलाकर ओबीसी वोटर यहां निर्णायक भूमिका में हैं।
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