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आखिर कितना सफल होगा शासन का जल गंगे अभियान

 आखिर कितना सफल होगा शासन का जल गंगे अभियान

पहले इसका नामकरण था नमामि गंगे बाद में जल गंगा हो गया। नाम तो बदला और बताया गया कि इस अभियान के तहत प्रदेश भर में पुराने जल स्त्रों का सुधार व संरक्षण किया जायेगा, नदी नालों का भी उद्धार किया जायेगा, पर्यावरण को सुधारने के लिये पौधरोपण भी किया जायेगा। बड़ी तेजी के साथ इस अभियान को इस समय पर चलाया भी जा रहा है। सरकारी अमला फील्ड में दौरे कर रहा है। वह मौके पर जाकर जल गंगा अभियान की उपलब्धियों का अवलोकन भी कर रहा है। खबरें भी आ रही है कि कहां किस अधिकारी ने श्रमदान किया, कहां एनजीओ ने फोटो खिंचवायें और कहां जनता की भागीदारी सुनिश्वित हो रही है। प्रशासन के लिये समस्या सबसे अधिक तब होती है जब कोई बड़ा आयोजन होता है। सबसे अधिक इस भीषण गर्मी में जनभागीदारी को दिखाने के लिये भीड़ को एकत्र करना। बावजूद इसके प्रशासन के पास बड़ी क्षमता होती है इसलिये भीड़ तो जुट सकती है किन्तु सही मायने में इस तरह के कार्यक्रम जनअभियान तक साबित नहीं हो पाते जब स्वाभाविक रूप से जुटने के लिये तैयार नहीं होते। इसके पीछे भी कुछ महत्वपूर्ण कारण होते हैं। सबसे बड़ा कारण जनता को विश्वास में न लेना, केवल अवसर का फायदा उताकर उपयोग करना है।
*कहां है अभियान की कार्ययोजना ?*
प्रदेश भर में जहां जल गंगा के नाम पर व्यापक अभियान चलाया जा रहा हो वहां प्रदेश स्तर तक आंकड़े तो पहुंच गए हैं, प्रदेश स्तर का आंकड़ा तो बताया जा रहा है। किन्तु जिले में कितने कार्य हो रहे हैं, कहां-कहां ऐसे कार्य हो रहे कौन से कार्य नगरीय क्षेत्र में, कौन से कार्य ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे है इसका कोई डाटा नहीं मिलेगा। जो कार्य पहले से ही चल रहे हैं यदि उन कार्यों को इस शामिल किया जाता है तो ऐसे पहले से ही किसी न किसी योजना के नाम स्वीकृत ही हैं। उन कायों को पूरा करवाने के लिये इस तरह का चलाया जा रहा है अथवा ऐसे कार्यों को इस अभियान में शामिल करना है जो बारिस के समय जरूरी होते हैं, जिन कार्यों को कभी किसी कार्ययोजना का हिस्सा नही बनाया जाता। जिन कायों को कभी किसी योजना में शामिल भी किया गया तो कोई उपलब्लिथ नहीं दिखी। सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि प्रतिवर्ष जल संरक्षण के नाम पर, पौध रोपण के नाम पर कुछ न कुछ तो होता ही है। किन्तु उसकी उपलब्धियां आज तक आ पाई हैं। उपलब्लिधयों से मतलब या भी है उसके सकारात्मक प्रभाव पर भी अध्ययन होना चाहिये। यदि पौध रोपण का कार्य पिछले कई वर्षों से हो रहा है और करोड़ी की संख्या में पौधों का रोपण हो चुका है तो फिर पर्यावरण पर उसका असर क्यों नही हुआ। जल स्तर में सुधार क्यों नहीं हो पाया। जो पौधे लगाये गये से कहां हैं, कितने जीवित बचे हुये हैं?
संवाददाता : आशीष सोनी

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