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धधक रही कोयले की भट्टियॉं बिना एनओसी के चल रहा काला कारोबार

 धधक रही कोयले की भट्टियॉं बिना एनओसी के चल रहा काला कारोबार

प्रदेश और देश की सरकार प्रदूषित वातावरण को स्वच्छ करने हेतु अनेकों प्रयास कर रही है। लगातार करोड़ों वृक्षों को पौधारोपण भी किया जा रहा है। लेकिन इसके विपरीत दमोह जिला में प्रदूषण फैलाये जाने का कार्य जोरों से चल रहा है लेकिन इसकी भनक आला अफसरों को नहीं है। जी हॉं हम बात कर रहे हैं दमोह जिले अंतर्गत आने वाली विधानसभा हटा के ग्राम शिवपुर और काईखेड़ा की। मड़ियादौ थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम शिवपुर और काईखेड़ा के बीच में कोयला निर्माण की अवैध भट्टियां धधक रहीं है, जिससे वातावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है साथ ही हरे भरे वृक्षों को भी काटा जा रहा है। आपको बता दें कि उक्त भट्टियां एक खेत में ग्रीन नेट लगाकर बंदेज करके लगभग डेढ़ दर्जन अवैध कोयला निर्माण की भट्टियों का संचालन हो रहा था लेकिन आज तक किसी को इस अवैध कोयले की करोंच तक नहीं लगी। 

छापामार कार्यवाही पर भट्टी संचालक मौके से गायब 

मडियादो राजस्व अंतर्गत रमना वीट से महज दो किलोमीटर दूर कोयला निर्माण की लगभग 15 भट्टी संचालित की जा रही है। जब इसकी जानकारी नो फिकर टीम को लगी तो संवाददाता ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए वहां पहुंचे। ग्राउंड रिपोर्टिंग पर पाया गया की रमना बीट से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर 15 अवैध कोयले की भट्टी संचालित की जा रही थी, इसकी शिकायत जब संवाददाता द्वारा तहसीलदार से की गई तो तहसीलदार और पटवारी की टीम ने छापा मारा, छापे में लगभग 100 कुंटल लकड़ी एवं 60 कुंटल कोयला मौके पर पाया गया। यह भट्टी लगभग 6 माह से अधिक से संचालित की जा रही थी, पिछले 6 माह में हजारों कुंटल लकड़ी जला दी गई। ध्यान देने वाली बात यह है कि इतनी बड़ी पैमाने पर लकड़ी कहां से प्राप्त हो रही थी और वन विभाग राजस्व विभाग को इसकी खबर क्यों नहीं लगी। 

भट्टियां संचालन की नही है कोई एनओसी

कारखाने की संचालन में लगभग तीन विभाग की एनओसी अति आवश्यक है जिसमें प्रदूषण मानक नियंत्रण बोर्ड का सर्टिफिकेट, श्रम विभाग से कार्य करने की अनुमति और वनांचल क्षेत्र में आने की वजह से वन विभाग की एनओसी के साथ.साथ राजस्व की अनुमति आवश्यक है। भट्टी संचालकों के द्वारा इन सभी नियमों को दरकिनार कर लघु संयंत्र स्थापित करने के नाम पर एमएसएमई रजिस्ट्रेशन तक करना ठीक नहीं समझा गया और बिना एनओसी के ही कोयले के इस काले कारोबार को संचालित किया जाता रहा। यह अवैध कारखाना कृषि भूमि पर संचालित किया जा रहा था, कारखाना अधिनियम 1948 और संशोधित अधिनियम 1970 को व्यावसायिक भूमि पर स्थापित करने के स्पष्ट निर्देश हैं, जबकि संचालकों के द्वारा यह कारखाना कृषि कृषि भूमि में संचालित किया जा रहा था। इस कारखाने के संचालन में उपयोग में आने वाला पानी और विद्युत कनेक्शन व्यावसायिक ना होकर कृषि के लिए ही लिए गए थे, जिससे शासन को राजस्व की भी लगातार क्षति संचालकों के द्वारा पहुंचाई गई।

हो रही लापरवाही उजागर

कोल अधिनियम की कंडिकाओं में कोयले के परिवहन हेतु एवं दुर्घटना से बचाव की स्थिति में किसी भी तरह के बचाव संयंत्र नहीं मिले, जिसके चलते कोल अधिनियम के प्रति भट्टी संचालकों की लापरवाही उजागर होती है। 

कारखाना अधिनियम में निर्दिष्ट दिशा निर्देशों के अनुसार 48 घंटे से अधिक की स्थिति में कारखाने में काम करने वाले मजदूर का निर्धारित बीमा होना चाहिए परंतु कारखाने में किसी भी प्रकार की कोई बीमा प्रति मौजूद नहीं थी।

संवाददाता : राहुल नामदेव

वीडियो लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=scjew_oYoUk


 

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