पत्रकारिता में सुनो सबकी करो अपने मन की
पत्रकारिता केवल ख़बरें लिखने या बताने का माध्यम नहीं है, यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें अनुभव, समझ और संवेदनशीलता की बड़ी भूमिका होती है। अक्सर कहा जाता है – "सुनो सबकी, करो मन की" – और यह बात पत्रकारिता में पूरी तरह लागू होती है।
हर व्यक्ति का अपना एक तरीका होता है सोचने, सीखने और काम करने का। इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि जो रास्ता या रणनीति किसी और के लिए सफल रही हो, वह आपके लिए भी उतनी ही कारगर साबित हो। पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक और जटिल है। यहां हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है, और यही इसे विशेष बनाता है।
अनुभव की अहमियत
पत्रकार बनने के लिए सिर्फ़ थ्योरी या किताबों का ज्ञान काफ़ी नहीं होता, असली सीख तो अनुभव से मिलती है। जब आप ग्राउंड पर उतरते हैं, रिपोर्टिंग करते हैं, गलतियाँ करते हैं – तब जाकर पत्रकारिता का असली चेहरा सामने आता है। ये अनुभव ही आपको सिखाते हैं कि कब सवाल पूछना है, कब चुप रहना है, और कब सच्चाई को उजागर करने के लिए आगे बढ़ना है।
गलतियाँ भी शिक्षक होती हैं
हर गलती एक अवसर है सीखने का। अगर हम अपनी गलतियों से सीखना शुरू कर दें, तो वही हमारी सबसे बड़ी ताकत बन जाती हैं। दूसरे क्या सोचते हैं, या क्या सुझाव देते हैं, वह ज़रूर सुनिए – पर अपनी समझ और अनुभव को प्राथमिकता दीजिए।
राय की भूमिका, लेकिन सीमाओं में
दूसरों की राय ज़रूर अहम होती है, पर वही राय यदि आपके आत्मविश्वास को कम करे या आपकी सोच को भ्रमित करे, तो वह नुकसानदायक बन सकती है। हर इंसान के अनुभव अलग होते हैं, इसलिए हर राय को अंतिम सच मान लेना सही नहीं।
हर सिक्के के दो पहलू
पत्रकारिता में अक्सर एक ही घटना को दो नजरिए से देखा जाता है। ज़रूरी है कि हम हर पहलू को समझें, पर निर्णय अपनी समझ और अनुभव से लें। निष्पक्षता, संवेदनशीलता और सजगता – ये तीन स्तंभ हैं, जिन पर एक अच्छे पत्रकार की पहचान टिकी होती है।
निष्कर्ष
पत्रकारिता में सफलता पाने के लिए अनुभव की कोई तुलना नहीं है। किताबें मार्गदर्शन दे सकती हैं, लेकिन सही रास्ता अनुभव ही दिखाता है। दूसरों की सुनिए ज़रूर, पर निर्णय मन की आवाज़ और अपने अनुभव के आधार पर ही लीजिए – क्योंकि आखिर में वही आपको एक अलग पहचान देगा।
सुनो सबकी, करो मन की – और पत्रकारिता में अपनी राह खुद बनाओ।
संवाददाता- आशीष सोनी
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