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जहां तक मान्यता ही नहीं, उससे आगे उच्च कक्षाओं का संचालन ?

 जहां तक मान्यता ही नहीं, उससे आगे उच्च कक्षाओं का संचालन ?


उन स्कूलों की जांच कौन करेगा जिनकी मान्यता पांचवी तक है किन्तु कक्षाओं का संचालन कक्षा आठावी तक हो रहा है। उन स्कूलों की जांच कौन करेगा जिनकी मान्यता आठवी तक है जबकि संचालन दसवी और बारहवी तक ही रहा है। क्या शिक्षा विभाग इस तरह की स्कूलों की जांच करने में अक्षम है अथवा जानबूझकर वह वास्तविकता की छिपाने का प्रयास कर रहा है। आज तक इस मामले में न तो कोई जांच हुई और न ही शिक्षा विभाग ने जानने का ही प्रयास किया कि जिले में कितनी ऐसी प्राइवेट शालायें है जो मान्यता के अनुसार संचालन नहीं कर रही हैं, जो मान्यता से हटकर उन कक्षाओं का संचालन कर रही है जिसकी उन्हें मान्यता ही नहीं है।

अन्य स्कूलों में मिलेगा नामांकन

जहां मान्यता से हटकर स्कूलों में कक्षाओं का संचालन हो रहा है वहां प्रवेश लेने वाले छात्रों का नामांकन उस स्कूल में नहीं दिखाया जाता। बल्कि दूसरी स्कूलों में नामांकन दिखाया जाता है। इस विषय को गोपनीय रखा जाता है। यहां तक कि अभिभावकों को भी इसको जानकारी नहीं दी जाती। परीक्षाओं में भी घपला किया जाता है। गृह परीक्षाओं की खानापूर्ति की जाती है तो बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन वहीं होता है जहां बच्चों को प्रवेश के दौरान अटैच किया जाता है। किन्तु इस टोल को हर अभिभावक नहीं समझ सकता। जान वही सकता है जो इस मामले में अभिलेखों की छानबीन करने के लिये तैयार होगा।

 पड़ोसी जिलों की स्कूलों में भी दिखाये जाते हैं प्रवेश

कुछ ऐसी भी प्राइवेट शालाये है जिनकी मान्यता कई वर्षों से कक्षा आठवीं तक है किन्तु उनका संचालन कक्षा बारहवी तक हो रहा है। जानकारी यह भी मिल रही है कि कुछ प्राईवेट शालाओं ने अपने यहां संचालित होने वाली अवैधानिक कक्षाओं के प्रवेश पाने वाले बच्चों का प्रवेश दूसरे जिलों की स्कूलों में करवा रखे हैं। केवल यहां उन बच्चों की केवल पढ़ाई होती है। जबकि नियमानुसार जिन्हें आठवीं से ऊपर की मान्यता ही नहीं है उन्हें उसके ऊपर की कक्षाओं को संचालित करने का कोई अधिकार ही नहीं होना चाहिये। वर्षों से इस तरह का खेल चल रहा है बावजूद इसके शिक्षा विभाग जांच करने व ऐसी स्कूलों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने का प्रयास ही नहीं करता।

बगैर मान्यता अटैचमेन्ट करने  की बीमारी पुरानी हो चुकी है

यह भी सही है कि प्राईवेट स्कूलों में बगैर मान्यता कक्षाओं का संचालन करना एवं दूसरी स्कूलों में प्रवेश के नाम पर बच्चों को अटैच करने की बीमारी पुरानी हो चुकी है। प्राथमिक स्तर पर भी इसी तरह का खेल होता था जहां स्कूलों को जब मान्यता नहीं मिलती थी तब प्रवेश देने वाले बच्चों का नाम वे किसी अन्य स्कूल में दर्ज करवा देते थे। बाद में जब मान्यता मिल जाती थी को वहां से टीसी अपनी स्कूलों में नाम दर्ज कर लेते थे। इस तरह की छूट शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से मिलती थी। यही कारण है कि आगे चलकर गह प्रयोग और भी व्यापक हो गया। जहां मान्यता प्राप्त संस्थाओं ने उन कक्षाओं का भी संचालन शुरू कर दिया जिनकी उन्हें मान्यता ही नहीं

थी।

 अधिक फीस की जांच हो सकती है तो अवैध कक्षा संचालन की क्यों नहीं..?

यहां सवाल यह है कि जिन स्कूलों द्वारा मनमानी शुल्क वृद्धि की जाती है और शासन के नियमों व निर्देशो का उल्लंघन किया जाता है उसकी जांच प्रशासन करवा सकता है तो जिन शालाओं द्वारा मान्यता से अधिक कक्षाओं का अबैधानिक संचालन किया जाता है उसकी जांच क्यों नहीं होती। क्या प्रशासन इस बात का दावा कर सकता है कि रीवा जिले में ऐसी कोई भी प्राईवेट स्कूल नहीं है जिसका संचालन मान्यता से हटकर किया जा रहा है। जिसकी मान्यता आठवीं तक या पांचवी तक है जबकि संचालन दसवी व बारहवीं तक हो रहा है।

सभी तरह की स्कूलों की कुण्डली शिक्षा विभाग के अधीन

यह  भी सही है कि स्कूल चाहे निजी हो या शासकीय सभी की कुण्डली शिक्षा विभाग के पास है। सभी स्कूलों की आनलाईन एवं आफलाईन दोनो तरह के जानकारी शिक्षा विभाग के पास है। यह भी सही है कि समय-समय पर सभी तरह की स्कूलों का निरीक्षण भी किया जाता है। संकुल प्राचार्य हो या विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी दोनों के पास उनके अधीन स्कूलों की सम्पूर्ण जानकारी रहती है। कई अभिलेखों का सत्यापन भी उनके द्वारा ही किया जाता है। इसके बावजूद आज तक किसी भी संकुल प्राचार्य या बीईओ ने इस संबंध में आपत्ति दर्ज नहीं करवाई होगी कि उसके क्षेत्र में ऐसी निजी स्कूलों का भी संचालन हो रहा है जिनकी जहां तक मान्यता है। उससे अधिक कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा से जुड़े माफियाओं का संरक्षण कहां से हो रहा है।

संवाददाता : आशीष सोनी

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