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60 फीसदी पुलिस सेवकों के भरोसे है जिले की कानून व्यवस्था

 60 फीसदी पुलिस सेवकों के भरोसे है जिले की कानून व्यवस्था

जिले में 68 फीसदी पुलिस अधिकारी, कर्मचारी कार्यरत हैं। इसमें एक सैकड़ा पुलिस सेवक प्रशिक्षण में हैं। सिंगरौली जिला पुलिस बल की कमी से जूझ रहा है। सबसे ज्यादा पद आरक्षक एवं प्रधान आरक्षकों के रिक्त पड़े हुए हैं। जिसके चलते कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में भी आला अफसरों के सामने अड़चने आ रही हैं।गौरतलब हो कि प्रदेश की भाजपा सरकार का दावा है कि कानून व्यवस्था बेहतर है। अपराधों पर नियंत्रण रखने एवं इसमें संदिग्ध आरोपियों पर पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। यह बात किसी हद तक मान भी ली जा रही है। किन्तु जब जिले में पर्याप्त पुलिस बल न हो फिर अपराधों पर नियंत्रण रखना कितना कठिन कार्य होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। एसपी दफ्तर से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक जिले में पुलिस अधिकारियों को लेकर हवलदार एवं सिपाही तक के तकरीबन 1287 पद स्वीकृत हैं। हालांकि यह पद आज से करीब 4 दशक पूर्व का है। बढ़ती आबादी के अनुसार पद नहीं बढ़ाये गये। जबकि जिले की जनसंख्या 14 लाख के पार है। वर्तमान समय में जिले में 885 पुलिस अधिकारी, कर्मचारी एवं सिपाही, हवलदार कार्यरत हैं। इनमेें से एक सैकड़ा पुलिस सेवकों की ड्यूटी प्रशिक्षण में है। साथ ही 10 प्रतिशत पुलिस सेवक अपराधियों को पकडऩे अपने निजी अवकाश एवं अन्य कार्यों में लगे रहते हैं। जिसके चलते यह माना जा रहा है कि 60 फीसदी पुलिस सेवक ही सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से सबसे ज्यादा हवलदार एवं आरक्षकों के पद रिक्त हैं। आरक्षकों को कार्यवाहक प्रधान आरक्षक व प्रधान आरक्षकों को कार्यवाहक एएसआई बनाये जाने के बाद यह पद रिक्त पड़ा हुआ है। जिसके कारण यह समस्या निर्मित है। अधिकारी भी मानते हैं कि स्टाफ की भारी कमी है जिसके चलते कई तरह की समस्याएं आ रही हैं। हालांकि अधिकारियों का  दावा है कि स्टाफ की कमी के बावजूद कानून व्यवस्था बेहतर है। अपराधियों पर नकेल कसने में पुलिस सफल है। हालांकि पुलिस इस तरह का दावा कर रही है। इनके दावे में कितना दम है यह जगजाहिर है। जिले में करीब तीन महीने के दौरान हत्या जैसे गंभीर अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस तरह के आंकड़े भी बया कर रहे हैं।

11 हजार जनसंख्या पर एक पुलिस सेवक

जिले की जनसंख्या के लिहाज से यदि औसतन नजर दौड़ायें तो 11 हजार की आबादी पर एक पुलिस सेवक ही हैं। हालांकि इसमें सभी सेवक हैं। 11 हजार की आबादी पर एक पुलिस सेवक के भरोसे कैसे अपराध पर नियंत्रण पाया जा सकता है यह भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है। पदों की पूर्ति न होने एवं 4 दशक पूर्व स्वीकृत पदों के विरूद्ध पद न बढ़ाये जाने पर भी प्रदेश सरकार पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। फिलहाल जिले में पुलिस बल की भारी कमी से पुलिस महकमा जूझ रहा है। रिक्त पदों की पूर्ति कब होगी इस पर अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी।

पुलिस सेवकों पर है काम का अतिरिक्त बोझ  

सूत्र बताते हैं कि पुलिस सेवकों पर इन दिनों काम का अतिरिक्त बोझ है। यहां तक की कई पुलिस सेवकों को 16 से 18 घण्टे तक ड्यूटी करनी पड़ रही है। साथ ही इन दिनों अलग-अलग अभियान भी चलाया जा रहा है। जिसमें समर कैम्प, पैदल गश्ती अभियान, जन जागरूकता अभियान, मादक पदार्थ, आबकारी एक्ट, यातायात सुरक्षा अभियान सहित अन्य शामिल हैं। साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों के भी अलग-अलग कार्रवाई के निर्देश रहते हैं। वहीं मुख्यमंत्री के 127 एवं 8 बिन्दु पर ही कार्रवाई करनी होती है। बताया जा रहा है कि इन्हीं अतिरिक्त अभियान के चलते पुलिस सेवकों पर काम का अतिरिक्त बोझ भी है।

कईयों को नहीं मिल पा रहा स्पेशल 15 दिनों का अवकाश

आलम यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा सप्ताह में किसी एक दिन पुलिस जवान स्वैच्छिक अवकाश ले सकते हैं। यह साप्ताहिक अवकाश कागजों में ही सिमट कर रह गया है। चर्चा है कि निरीक्षक से लेकर हवलदार एवं सिपाहियों को भी साल में एक बार 15 दिनों के लिए स्पेशल अवकाश लेने का प्रावधान है। किन्तु सूत्रों का कहना है कि जिले में पुलिस बल की कमी के चलते कई पुलिस सेवकों को स्पेशल अवकाश भी नहीं मिल पा रहा है। लिहाजा यह स्पेशल अवकाश न मिलने से कथित पुलिस सेवक भी परेशान हैं।

संवाददाता : पंकज तिवारी

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