Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

Responsive Advertisement

मान्यता की दुकान खोलकर हो गया एक करोड़ का खेल... ?

 मान्यता की दुकान खोलकर हो गया एक करोड़ का खेल... ?



बीआरसी व जिला शिक्षा केन्द्र के बीच मान्यता नवीनीकरण एवं नवीन मान्यता में करीब एक करोड़ की वसूली का खेल हो गया। किसी से पांच हजार, किसी दस और किसी से उससे भी अधिक की वसूली की गई। इस तरह से औसत यदि दस हजार भी मान लिया जाय तो यह आंकड़ा करीब एक करोड़ से भी अधिक पहुंचता है। मान्यता को लेकर बीआरसीसी से डीपीसी तक शासन के नियमों व दिशा निर्देशों की पूरी तरह से धज्जियां उड़ाई गई। यदि जांच हो जाय तो बीआरसीसी से लेकर डीपीसी तक को जबाब देना मुश्किल हो जायेगा। उनकी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।

संस्था संचालकों को नोटिस देने व बुलाने का औचित्य क्या.....?

जब मान्यता को लेकर कहा गया था कि सब कुछ आनलाईन ही होना है। पहले मान्यता को लेकर आनलाईन आवेदन किया जायेगा। फिर उसका सत्यापन एवं निरीक्षण बीआरसीसी करेगा और आनलाईन अनुसंस्ा करेग। इसके बाद डीपीसी को निर्णय लेना है। दोनो स्तर से समय सीमा भी निर्धारित की गई थी। बावजूद इसके संस्था संचालकों से वसूली के लिये बीआरसीसी एवं डीपीसी दोनो स्तर से वसूली के नाम पर नियमों की धज्जियों उड़ाई गई।

नोटिस और आफलाईन मांगे गये अभिलेखो के पीदे मकसद क्या....?

मान्यता के संबंध में जारी दिशा निर्देशों में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं किया गया था कि किसी भी संस्था को बीआरसीसी अथवा डीपीसी की तरफ आफलाईन नोटिस जारी की जायेगी। फिर उसको आवेदन में कमियां बताकर उसकी पूर्ति करने के नाम पर वसूली की जायेगी। किन्तु यहां यही हुआ कि आनलाइन आवेदन के बाद पहले बीआरसीसी के स्तर से निरीक्षण एवं सत्यापन के नाम पर कमियां निकाली गई। फिर उन्हें नोटिस देकर उन कमियों की पूर्ति करने के लिये कहा गया। उसी दौरान उन कमियों के नाम पर वसूली की गई। जब मांग के अनुसार रिश्वत की राशि मिल गई तब अनुसंशा कर दी गई। जब वहीं मामले जिला शिक्षा केन्द्र पहुंचे तो यहां भी वहीं प्रक्रिया अपनाई गई। यहां भी अभिलेखों की जांच के नाम पर छानबीन शुरू हुई। सूत्र बताते हैं कि छानबीन समितियों का भी गठन किया गया। फिर जिला स्तर से भी स्कूल संचालकों को आफलाईन

नेोटिस दी गई, कई लोगों को यह नोटिस मोबाईल में दी गई। चूंकि सवाल मान्यता का था इसलिये नोटिस के बाद ऐसे संचालक डीपीसी कार्यालय पहुंचे और यहां जानकारी ली। किन्तु मामला तो वसूली में फंसा हुआ था लिहाजा सेवा शुल्क प्राप्त करने एवं खानापूर्ति के नाम पर कुछ कागजात जमा करवाने के बाद मान्यता देने का आश्वासन दिया गया। बीआरसीसी एवं डीपीसी के बीच लेनदेन की प्रतिस्पर्धा कुछ इस तरह से चली कि जितना वहां दिया गया था उतना यहां भी देना होगा। चूंकि यहां जिला स्तर पर कुछ ऐसे अधिकारी व कर्मचारी भी पदसम है जिन्हें वसूली की राशि का पता भी चल जाता है। लिहाजा वे इस काम में तेजी से सक्रिय हो गये। मान्यता समय पर न होने एवं विलंब होने के पीछे सबसे बड़ा जो कारण था वह वसूली ही था। यही कारण है कि वसूली के लिये पहले एक-एक आवेदन पत्रों की जांच के नाम पर कमियां निकाली गई फिर उन कमियों के आधार पर नोटिस जारी कर उसकी पूर्ति करने के नाम पर वसूली की गई। जबकि मान्यता की आनलाईन प्रक्रिया में आफलाईन कार्रवाई करने की न तो कोई आवश्यकता थी और न ही कोई निर्देश। फिर भी पता नहीं यहां किस निर्देश के तहत ऐसा किया गया। बड़ा सवाल यही है कि प्रक्रिया में सुधार के नाम पर चाहे प्रयोग कुछ भी होता रहे सिस्टम को खराब करने वाले रास्ता निकाल ही लेते हैं! 

आरटीई की सीटों का आंवंटन कब ......?

बताया जा रहा है कि अभी सभी आवेदक संस्थाओं को मान्यता नही मिल पाई है। समय सीमा समाप्त हो चुकी है। वहीं 1 अप्रैल से नया शिक्षण सत्र शुरू हो रहा है। दिशा निर्देशों के अनुसार नया शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के पहले आरटीई के तहत सीटों का आवंटन भी हो जाना चाहिये। किन्त सवाल यही है कि जब सभी संस्थाओं को अभी तक मान्यता ही नहीं मिल पाई तो सीटों का आवंटन कब और कैसे होगा। ऐसी स्कूलों में प्रवेश को लेकर क्या होगा? जिनकी मान्यता निरस्त होती है उन्हें अपील में जाने के लिये क्या समय निर्धारित किया जायेगा? प्रथम अपील फिर द्वितीय अपील आदि का भी प्रावधान है। यह सब करते करते तो नये शिक्षण सत्र का आधा समय बीत जायेगा। 

मौखिक सूचनाओं के आधार पर भी चल रहा है मान्यता का खेल

यह भी बताया जा रहा है कि जिन शालाओं को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है उन्हें मौखिक सूचनायें भी दी जा रही हैं कि मान्यता जारी हो चुकी है। किन्तु सूत्रों के अनुसार उन्हें मान्यता संबंधी कोई अभिलेख अभी प्राप्त नहीं हुये हैं। जिस तरह से बताया गया था कि डिजिटल हस्तार से मान्यता जारी होनी है उस तरह से पोर्टल में उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। यह भी सही है कि प्रतिवर्ष मान्यता को लेकर इसी तरह से वसूली का खेल चलता रहा और वर्तमान में भी चल रहा है। राज्य शिक्षा केन्द्र भले ही नये-नये नियम बनाता रहे और लागू करता रहे किन्तु वसूली करने वाला गिरोह अपने ही हिसाब से काम करता है।

संवाददाता : आशीष सोनी

Post a Comment

0 Comments